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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 17 सितम्बर-२०१६ पर उसे कोई लाभ न हुआ। नर्मदासुंदरी हाथ में खप्पर लेकर पागलों के समान भिक्षाटन करने लगी। अंतमें उसे जिनदेव नामक श्रावक मिला । नर्मदासुंदरी ने अपनी समस्त आपबीती उससे कही। धर्मबंधु जिनदेव ने उसे वीरदास के पास पहुँचा दिया। नर्मदासुंदरी को संसार से बहुत विरक्ति हुई और उसने सुहस्तिसूरि के चरणों में बैठकर श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर ली। ___ मम्मटाचार्य ने काव्य प्रकाश ग्रंथ में अलंकार का लक्षण बताते हुए कहा कि-अलंकरोति इति अलंकारः। यह अलंकार शब्द की व्यत्पत्ति है। इसके अनुसार काव्य शरीर को विभूषित करनेवाले अर्थ या तत्त्व का नाम अलंकार है। जिस प्रकार कनक-कुण्डल आदि आभूषण शरीर को विभूषित करते हैं, इसलिए अलंकार कहलाते हैं, उसी प्रकार काव्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि काव्य के शरीरभूत शब्द और अर्थ को अलंकृत करते हैं, इसलिए अलंकार कहलाते हैं। अलंकार अलंकार्य (काव्य शरीर) का केवल उत्कर्षाधायक तत्त्व होता है, स्वरूपाधायक या जीवनाधायक तत्त्व नहीं । जो स्त्री या पुरुष अलंकार विहीन हैं, वे भी मनुष्य हैं। पर जो अलंकार युक्त हैं, वे अधिक उत्कृष्ट समझे जाते हैं। इसी प्रकार काव्य में अलंकारों की स्थिति अपरिहार्य नहीं है। वे यदि हैं, तो काव्य के उत्कर्षाधायक होंगे, यदि नहीं तो भी काव्य की कोई हानि नहीं है। इसलिए अलंकारों को काव्य का अस्थिर धर्म माना गया है। यही गुण तथा अलंकारों का भेदक तत्त्व है। गुण काव्य के स्थिर धर्म हैं। काव्य में गुणों की स्थिति अपरिहार्य है, परंतु अलंकार स्थिर या अपरिहार्य धर्म नहीं हैं, केवल उत्कर्षाधायक हैं। उनके बिना भी काव्य में काम चल सकता है। इसलिए काव्य के लक्षण में मम्मट ने- 'अनलंकृती पुनः क्वापि' कहा है। प्रायः सभी आचार्यों ने शब्द और अर्थ को काव्य का शरीर माना है। अलंकार शरीर के शोभाधायक होते हैं। इसलिए काव्य में शब्द और अर्थ के उत्कर्षाधायक तत्त्व का ही नाम अलंकार है, अर्थात् अलंकार का आधार शब्द और अर्थ है। इसी आधार पर शब्दालंकार, अर्थालंकार और उन दोनों के मिश्रण से बने हुए उभयालंकार इन तीन प्रकार के अलंकारों की कल्पना की For Private and Personal Use Only
SR No.525314
Book TitleShrutsagar 2016 09 Volume 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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