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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 श्रुतसागर सितम्बर-२०१६ पगि पगि नव नव नाटकू ए, तलिआ तोरण सार तु२ । धरि धरि गूडी ऊभवइ ए, ओच्छव जय जय कार तु२ ॥८॥ सजन वरग आरोगीइ ए, भोजनि कूर कपूर तु२ । पट्टओला पहिरावीइ ए, दानअ वारीपूर तु२ ॥९॥ परमेसर महिमा लगइ ए, राणी जीतु राउं तु२ । तिण कारणि ए अजिअजिण, सवि लक्खण कर पाउ तु२॥१०॥द्वितीय भाषा॥ जीणवर विलसइ कुमरपदि तु२ भमारूली, पूरव लाख अढार तु२। झाझा त्रिपन लाख वली तु भमारूली, राज करइ जगि सार तु२ ॥११॥ भोगहली कर्म भोगवई तु भमारूली, सुख संपत्ति संतान तु। सुरवर नरवर पयसेव करइ तु भमारूली, जिनमनि नहि अभिमान तु ॥१२॥ हिव संवच्छर दान दिइं तु भासरूली, सचराचरि जयदा साद तु। जे जिम मागइ तेहि तिम तु भमारूली, जिणवर करइ वार) प्रसाद तु ॥ १३॥ ए कई दिन बिहु घडीअ माहि तु ममारूली, जिन दिइं कनकनुं दान तु । एक कोडि आठ लाख वली तु भमारूली, इंम संवच्छर मान तु ॥१४॥तृतीय भाषा॥ माह मासि दिप्त(सित) नित नउमि दिन सलूणी रे, व्रत लीधउं जिणराइं सलू0२ तु । ततखिणी चउथउं ज्ञान भयउ सलूणी रे, सुरपति प्रणमइं पाइ सलू0 तु॥१५।। परमाअनि करई पारणूं सलूणी रे, बंभद् करई सुरराउ२ तु । कंचण सारध बार कोडि सलूणी रे, वुट्ठी करई सुरराउ२ तु ॥१६॥ बार वरिस छदमस्थकाल सलूणी रे, तप तपइ मन सुप्रसन्न२ तु । पोस अजुआली तेरसि सलूणी रे, केवलज्ञान ऊपन्न(उ)॥१७।। चतुर्थ भाषा ॥ हिव चउविह सुरवर मिलीअ नरेसुअडा, समोसरण विचार। एक जीभ किम वरनवुअ नरेसुअडा, रिद्धि न भालई पार ॥१८॥ चउसठि इंद्र लोटी गणे ए नरेसुअडा, जिणपयकमलि नमंति। नवग्रह सेवा नितु करइ ए नरेसुअडा, देव दानव सेवंति ॥१९॥ देव दानव देवी तणी ए नरेसुअडा, कोडा कोडि असंख। जिन-महिमा अतिसय तणी ए नरेसुअडा, कवण सुजाणइं संख ॥२०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525314
Book TitleShrutsagar 2016 09 Volume 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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