________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
SHRUTSAGAR
18
तव पाप मोडी हाथ जोडी, भक्ते नमे भगवंत, जय दयासिंधु, जगतबंधु, सिद्धिवधुवरकंत । हरिणेगमेषी देव हाथे सुघोषा इति नाम,
जब रणझणी, तव लाख बत्रीस वज्जई अभिराम ॥२॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
June-2016
तव जीतभक्ति (धरमपला(त्नी)) मित्रवृंदै प्रेरिता,
चेलोस्वरा (चाले सुरा) जिनजन्म हेतो, नाकपति अग्रे स्थिता, पालकासुराभिधयान (पालकासिद्ध यान) संश्रित (संस्थित) द्वीप नंदीसर यदा,
आवे तदा संखेपि पालक, विमान नमती तदा || ३ || (आवे तदा संखेपि पालक, जिहां जिनमाता तदा ) ॥ ३॥ अवस्वापिनी घन देइ निद्रा पंचरूपकरी मुदा, जिनराज कर संपुट ग्रही, हरि जाय सुरशैले तदा । शेष सर्वेपि सुरेंद्रा, देववृंदै परिवृता, जिनजन्म महिमा करण हेतो, संहिती भूती स्थिता ॥४॥
॥ ढाल ॥
सुरलोक नायक इंद्र अच्युत, परम भक्ति संयुक्त ए, अभियोगिकामरवृंद तेडी कहत भक्ति संयुक्त ए । सुरशैल द्रह नदी कुंड वृक्षस्कार औषधी नीर ए, पुष्पपंकज मृत्तिका वर शीघ्र धरो अम तीर ए ॥१॥ तव तेह सुरवर भक्ति निर्भर, विमलभाव सुबोध ए, (साठ) लाख उपर कोडी कलशा भरी करे निज सोध ए । इम देव देवी भक्ति भावे, गीत गावे चंग ए,
बहु हावभावे नृत्य करता धरे रंग अभंग ए ॥२॥
अच्युतादि इंद्र ईशानाभिधा, पर्यंत ए,
इम भक्ति करी सौधर्मपति करे, तेह सुणो तुमे कं (खं) ए । कृत पंच रूप ईशानपति उत्संगे श्री जिनराज ए, चउवृषभ श्रृंगाष्टक झरंते स्नात्र करे शिवकाज ए ॥ ३॥