________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
जून-२०१६ सुरभव सुख विलसी, रिद्धि मास सुख वासरे, सुदितेरसे अवतर्या विजयाकुखे खास रे। तव प्रगट्यो त्रिभुवन, सविता तुल्य प्रकाशरे, धन धन मानवभव जिहां प्रभुपूर्यो वासरे॥२॥
॥दुहो॥ चउद सुपन चतुरा तदा, देखे जिनवर माय, चउद भुवन नायक विभू. जब गर्भे रहे आय ॥१॥
॥ढाल॥ पहेले सुपनेजी गज देखे गजगामिनी, बीजे सुपनेजी धोरी देखे मध्यजा(भा)मिनी। सिंह त्रीजेजी, चोथे लक्ष्मी देवता, फुलमालाजी, ससिरवि, जयकुंभ सोहता ॥१॥ पद्मसरोवरजी, खीरसमुद इग्यारमे, सुरसेवितजी देखे विमान ते बारमे। राशि रयणनीजी, देखे सुपन ते तेरमे, निर्धूम अग्निजी अंबर व्यापी चौदमे ॥२॥ देखी जागीजी भाखे पियुने इणी परे, फल जे होयजी ते मुझ दाखो शुभ परे। कंत भाखेजी होस्ये सुत सोहामणो, सुरनरपतिजी नमस्ये जस महिमा घणो ॥३॥ तव हरखीजी कंतवचन सुणी कामिनी, हवे जागेजी, जिनगुण थुणते जांमिनी। परभातेजी सुपनपाठक बोलावीया, अष्टांगनाजी निमित्त शास्त्रमति भाविया ॥४॥ नृप पुछेजी सुपन अर्थ मन गहगही, फल दाखोजी शास्त्र प्रमाणे अम सही। ते जंपेजी चउद भुवन विभु जिनपति, जस नमस्येजी सुरपति नरपति नीतती ॥५॥ नृप हरखीजी, दान देइ संतोषिया, अशनादिकजी, चउद भेदे ते पोषीया। नव मासेजी सार्ध सप्तदिन अनुक्रमे, माघाष्टमीजी शुक्ल मध्य रजनी समे॥६॥ जिन जन्म्याजी, त्रिभुवन जनमन सुखकरु, दिशिकुमरीजी, आवी छप्पन तव मनहरु । करे करणीजी, भक्ति जितभावे करी, ए करणीजी, भव्यजीव तारणतरी ॥७॥
॥ढाल॥ हवे पाकशासन, अचल आशन, कंपियो तत्काल, गजकर्ण पिप्पल पर्णनी परे, चपला नहि एक ताल। तव कोप भृकुटी कठिन सुरपति जुए अवधिज्ञान, जिन जन्म जाणी, भक्ति आणी तजी आपणु मान ॥१॥
For Private and Personal Use Only