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श्रुतसागर
अप्रैल-२०१६ लहर व्याप्त होती जा रही थी.
___ जैन समाज सदा ही सभी जीवों के लिए सखकर रहा है. सम्मेलन का प्रत्येक निर्णय इस सुखकारिता के पोषण के लिए ही लिया गया था. चाहे वह जीवदया का मुद्दा हो, दीन-दुःखियों की अनुकंपा का मुद्दा हो, बहुत बड़ी संख्या में आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए जैनों के प्रश्न हों, श्रीसंघों की सबसे बड़ी समस्यारूप साधारण खाते की आय का मुद्दा हो, या फिर श्रीसंघ के लिए विविध प्रकार के कड़े अनुशासन, अंकुश तथा स्पष्ट मार्गदर्शन हो. इस प्रकार की अनेक ऐतिहासिक घोषणाएँ सम्मेलन में उपस्थित जनसमुदाय के बारम्बार होनेवाले हर्षनाद के बीच की गई थीं.
पूज्य प्रभावक आचार्य श्री राजरत्नसूरीश्वरजी के द्वारा अपनी कुशलप्रज्ञा से संकलित किए गए ६३ से अधिक मुद्दों तथा सम्मेलन के विविध बिन्दुओं के विषय में प्रखर प्रवक्ता पूज्य आचार्यदेव श्री रत्नसुन्दरसूरीश्वरजी, विशिष्ट विद्वत्ता के धनी पूज्य आचार्यदेव श्री शीलचंद्रसूरीश्वरजी, ओजस्वी व्याख्याता पूज्य आचार्यदेव श्री हेमचन्द्रसागरसूरीश्वरजी ने बीच-बीच में अत्यन्त प्रेरणादायक व रसप्रद बातें बतलाईं.
__ पूज्य भगवन्तों ने इस बात पर जोर देते हुए सबको बतलाया कि सकल श्रीसंघ ने हमारे ऊपर विश्वास रखा है. अब श्रमण और श्रावक संघ की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि प्रत्येक प्रस्ताव मात्र कागज पर न होते हुए व्यवहार में आए. अब यह विश्वास किसी भी प्रकार से तोड़ा नहीं जा सकता.
उन्होंने बताया कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के श्रीसंघों, प्रबुद्ध विचारकों तथा तपागच्छ के समग्र साधु समुदायों की ओर से महीनों पूर्व सूचनाएँ मँगाई गई थीं. लगभग ६०० से अधिक पृष्ठों में उपयोगी व महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त की गई थीं. उसके बाद विचार-विमर्श समिति से जुड़े हुए ५० से अधिक विचक्षण आचार्य तथा मुनि भगवंतों ने उनमें से मुद्दों का संकलन किया. __ पूज्य साध्वीजी भगवन्तों से सम्बन्धित प्रश्नों के लिए एक विशाल साध्वी सभा का आयोजन सम्मेलन पूर्व ही अलग से किया गया था. उससे प्राप्त सूचनाओं के आधार पर सम्मेलन में पूज्य साध्वी भगवन्तों के लिए दूरगामी प्रभाव डालनेवाले मुद्दों से सम्बन्धित अनेक प्रकार के महत्त्वपूर्ण निर्णय इस परिपक्व चर्चा के अन्त में लिए गए थे.
जिनशासन के इतिहास में सर्वप्रथम बार इसप्रकार व्यापक रूप से मुद्दों का संकलन कर उनके ऊपर मुक्त रूप से विचार-मंथन किया गया. कुल ६३ जितने
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