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SHRUTSAGAR
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April-2016 संवत अढारना चौद(१८१४) में जाणीये, चैत्र सुदि नवमी गुरुवार सुग्यानी, आचारजपद दीये भली भांतिस्युं, मन हरख्या नर-नारि सुग्यानी ॥८॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी(रि) पद दीयुं, शिणोरग्रामे उदार सुग्यानी, दीक्षा-आयरियपद एके गामे, गुरुमो बहुतर प्यार सुग्यानी ॥९॥ दीक्षामहोछव त्रीजी ढालमें, खरच्यो द्रव्य विशाल सुग्यानी, पुण्ये पुण्य तणी छे संपदा, होज्यो मंगलमाल सुग्यानी ॥१०॥ ॥ दूहा। संघ सघलो भेलो थई, करतो ओछव चंग, सूरिपदओछव भलो, दिन-दिन उलट रंग ॥१॥ नामें ठामें जे कहुं, सुणज्यो तुमे एकचित्त, जिनशासन दीपाववा, द्रव्य खरचे बहु प्रीति ॥२॥
।। ढंढण ऋषिने वांदणा हुं वारी लाल - ए देशी ॥
धन धन श्रीसंघ चिरंजयो हुं वारी लाल,(आंकणी) मंगलजी नाहना भला हुं वारी लाल, भूला मीठा मनसुद्धि रे हुं वारी लाल । द्रव्य खरचे भली भातस्युं हुं वारी लाल, जेहनी छे बहु बुद्धि रे हुं वारी लाल ॥१॥
लखु वलभ चातुर घणा हुं वारी लाल, जिम आसाढो मेह रे हुं वारी लाल । गुरुभक्तिं द्रव्य खरचता हुं वारी लाल, गुरुउपर बहु स्नेह रे हुं वारी लाल ॥२॥ भूला सूरचंद जाणीये हुं वारी लाल, हेमा देवा मनरंग रे हुं वारी लाल । चतुरमें चाणाक्यता हुं वारी लाल, नही मिथ्यातनो संग रे हुं वारी लाल ॥३॥
1. गुरुमां
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धन धन श्रीसंघ.....
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