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SHRUTSAGAR
April-2016 ॥ देशी – हमीरानी॥ गुर्जर देशमां आवीया, राजनगर सुविसाल विवेकी। चैत्य मोटां जिनराजना, नमतां दुख विसराय विवेकी, सांभलीये गुरुनी कथा, सुणतां पातिक जाय विवेकी॥१॥ [आंकणी] निज पुत्र साथे लेईने, गुरु उपाश्रय दीठ विवेकी। चतुर्विध संघ बेठो तिहां, जोतां नयणे इष्ट विवेकी ॥२॥ सांभलीये... गुरु वांदीने ततखिणे, बेठा श्रीहेमराज विवेकी। धर्मकथा तिहां सांभली, गुरु तारणमे जिहांज विवेकी॥३॥ सांभलीये... संघ कहे हेमराजने, द्यो तुमे पुत्रनुं दांन विवेकी। वज्रधरस्वामी वुहरावीया, वधस्ये तुम चुंवांन विवेकी ॥४॥ सांभलीये... हेमराज दाक्षिणवसें, वचन कर्यु प्रमाण विवेकी। सफल अवतार मुझ पुत्रनो, थास्ये एह विन्नाण विवेकी ॥५॥ सांभलीये... झमाबाईनी बहु रागता, लीधो पुत्रने अंक विवेकी। आसना वासना तिहां करे, बुद्धिमे पुत्र निष्पंक विवेकी॥६॥ सांभलीये... विजयसौभाग्यसूरीश्वरं, सूरति छे चोमास विवेकी। हेमराजना पुत्रने, मोकल्या गुरुने पास विवेकी ॥७॥ सांभलीये... सूरति-संघ ते देखीने, हरख्युं सहु महाजन विवेकी, भणवा उद्यम कीजीए, रीझे सहुने मन विवेकी ॥८॥ सांभलीये... आवश्यकआदे देइ बहु, जैन तणा जे ग्रंथ विवेकी, कोश वैयाकरणादिकें, पर-वादीना पंथ विवेकी ॥९॥ सांभलीये... अलंकार काव्यादिकें, ज्योतिषशास्त्र प्रवीण विवेकी, न्यायशास्त्रनी युक्तिसें, विशेषावश्यक मे इन विवेकी ॥१०॥ सांभलीये...
1. तमारो
2. खावं 3. रहे, 4. प्रवीण
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