SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 श्रुतसागर अप्रैल-२०१६ क्रोधी लंठ अज्ञानी जे होइ, धूर्त कपटी जे होये रे। जटिल वटल उवेखी गुरुनो, घाती परनो द्रोह रे ॥७॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... सुपर्नु तणुं फल एहवा पुरुषने, नवि कहीये भव्यप्राणी रे। मूलदेवनें वली जटिल संबंधे, शास्त्रे तेह वात वखाणी रे ॥८॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... सद्गुरुनें जइ दंपती पूछे, गुरु कहे तुमे भाग्यशाली रे। राय-राणा सुतना पदपंकज, पूजस्यें दूधे पखाली रे ।।९।। श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... चंद्रकिरण जिम दिन-दिन वधता, तिम वधतो ते बाल रे। सगां-संबंधी देखी हरखे, थस्ये सहुनो प्रतिपाल रे ॥१०॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... हेमराज मनमां इम जाणे, मुझ घरि प्रगट्युं रत्न रे। पूरवपुण्यथी ए पुत्र माहरे, पुत्रना करतो यत्न रे ॥११॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... कामदुधाने सुरकुंभ माहरे, सुरतरु मुझ घरि फलीयो रे। अनुमाने ए वात यथारथ, मननो संदेह टलीयो रे ॥१२॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... इम चिंतवता षट वरसनो, पुत्र थयो बुद्धिनिधांन रे। पहेली ढाल विशाल ते जन्मनी, पुण्ये पुण्यविधान रे ॥१३॥ श्रीविजयलक्ष्मीसूरी... ॥हा॥ हेमराज मन चिंतवे, करुं सफल अवतार । जिन-वीतराग-पढिमा तणी, यात्र करुं सुविचार ॥१॥ 1. न कळी शकाय तेवो 2. हलको, तूच्छ For Private and Personal Use Only
SR No.525309
Book TitleShrutsagar 2016 04 Volume 02 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy