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SHRUTSAGAR
29
December-2015
के बाद किसी जैनाचार्य के बाद यदि विशिष्ट काल रहा है तो वह है हेमचन्द्राचार्य का काल. उस युग को हेम युग के नाम से जाना जाता है. उसी प्रकार आज का जो समय है वह पद्मसागर युग के नाम से जाना जाएगा. जिन शासन के हित में इनके द्वारा किए जा रहे कार्यों के कारण पूज्यश्री जैन श्रमण परम्परा के महान जैनाचार्यों की श्रेणि में स्थापित हो गए हैं.
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पूज्य आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन में साधुता के गुणों का उल्लेख हुए कहा कि इस संसार में एक मात्र साधुजीवन ही ऐसा जीवन है जिसमें किसी भी प्रकार का भय नहीं होता है. साधु के पास ऐसा कुछ भी नहीं होता जिसे चोर चुरा सके या राजा टैक्स ले सके. साधुजीवन एक उत्कृष्ट जीवन है जिसे इस लोक और परलोक दोनों जगह शांति ही शांति है. सांसारिक चिन्ता से मुक्त साधु बिना किसी भय के जीवन जीता है. अनेक भवों के संयमित जीवन के कारण ही आत्मा अपने चरम लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है.
पूज्यश्री ने कहा कि परमात्मा महावीर द्वारा बताए मार्ग पर चल कर ही हम अपने जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं. भगवान महावीर ने हमें करुणा, दया, प्रेम, भाईचारा का संदेश दिया उनके इन्हीं संदेशों का पालन करने से ही व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र का उत्थान हो सकता है. बड़े पुण्योदय से हमें मानव तन मिला है इस अवसर का पूरा लाभ लेकर हम अपने जीवन को धन्य बना लें. जिसने संयमित जीवन जीया है उसने अनन्त सुख प्राप्त किया है, जो इस संसार में आसक्त हो गया वह जन्म जन्मातर दुःखमय जीवन जीता रहता है. इसलिए हमें अपने मानव जीवन को सफल बनाने हेतु किसी गुरु के शरण में जाकर आत्मा का उद्धार कैसे हो यह विधि सीखनी चाहिए.
इस पावन अवसर पर अनेक गणमान्य लोगों ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए जिसमें गुजरात के पूर्व मुख्य मंत्री श्री चिमनभाई पटेल की धर्मपत्नि श्रीमती उर्मिलाबेन पटेल, श्री दशरथ पटेल, सेटेलाइट श्वे. मू. पू. संघ, अहमदाबाद के ट्रस्टी श्री हसमुखभाई चुडगर, श्री धनेशभाई शाह, श्रीमती प्रीतिबेन नानावटी आदि प्रमुख थे. सभी वक्ताओं ने पूज्य आचार्यश्रीजी की प्रभावकता, सरलता, वात्सल्यता, सार्वभौमिकता आदि का उल्लेख किया.
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