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संपादकीय
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हिरेन के. दोशी
श्रुतसागरना बीजा वर्षनो चोथो अंक तमारा हाथमां छे.
खरा प्रेमीना भाव अने एनी लाक्षणिकताओनुं वर्तमान समयने मार्गदर्शन आपतुं पूज्यपाद आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा रचायेलुं एक अल्प प्रसिद्ध सुंदर पद्य आ अंकमा प्रकाशित कर्तुं छे. तो गुरुवाणी हेठळ पूज्य गुरुभगवंतश्रीए सद्वांचन अने सद्गुरुना महिमाने उजागर करतुं एक ट्रंकु लखाण अत्रे प्रकाशित कर्तुं छे. शास्त्रोए जेने तीर्थ स्वरूप जणाव्या छे ऐवा सद्गुरु अने सद्वांचनना स्वरूपनो यथार्थ परिचय प्राप्त थाय छे.
अप्रकाशित कृतिना प्रकाशन रूपे प्रस्तुत अंकमां उपाध्याय राजरत्न गणिवरनी बे अप्रकाशित लघुकृतिओ प्रकाशित करी छे छेल्लां पांच-छ अंकोमां ज्ञानमंदिरमां उपलब्ध उपाध्याय राजरत्नगणिनी केटलीक अप्रकाशित कृतिओ प्रकाशित करेल छे. अप्रकाशित कृतिओनुं प्रगटीकरण धतुं रहे तो श्रीसंघमां स्वाध्यायनी प्रवृत्तिने वेग मळे.
पुनः प्रकाशित लेखोमां आ अंके श्रीयुत् हीरालालभाई कापडीयाजी द्वारा लखायेल जैन सत्यप्रकाश ई. १९५३ना सातमा अंकमा प्रकाशित थयेल " हैम कृतिओमां हारिभद्रीय उल्लेखो अने अवतरणो” लेख प्रस्तुत अंकमां प्रकाशित करेल छे. लेखनो विषय अने लेखना संदर्भों परत्वे वाचकोनुं ध्यान जाय अने आजना समये पण आ प्रकारना शोधविषयनी उपादेयता वधे ए आशयने आ लेख चरितार्थ करशे ए आशा अस्थाने नथी.
वाचकोना स्वाध्याय माटे तेमज खास करीने संपादको संशोधकोने उपयोगी बने ए हेतुसर जैनागम सन्दर्भ परिचय स्वरूपे केटलाक आगम संबंधी संदर्भ साहित्यनो परिचय अपायो छे. ज्ञानमंदिरमां उपलब्ध अने अत्यंत महत्त्वना गणी शकाय एवा आगम कोश साहित्य संदर्भे आ लेखन थयेलुं छे. आ सिवाय पण घणा महत्त्वना कोशो विद्यमान छे ज. खास करीने आ लेखमां एनी उपयोगिता, एनी संसाधन सामग्री विशेनो एक अल्प परिचय प्रस्तुत करेल छे. तो ऐतिहासिक सामग्री रूपे केटलाक अप्रगट लेखो प्रकाशित करेल छे.
ज्ञानमंदिरनी कार्यप्रणाली अने विद्वानोना कार्यनी सहभागितानुं ज्ञापन करतो 'संगणकीय ग्रंथालय प्रणाली में पेटांक की अवधारणा' नामनो लेख प्रकाशित करेल छे.
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