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गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी
भीतिनो सदंतर त्याग करवो.
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ज्यां सुधी भीति छे त्यां सुधी आत्मा एक क्षुद्र जंतु समान छे. आ विश्वमां सात प्रकारनी भीति राखनाराथी कोई जातनुं पण महान कार्य बन्युं नथी, बनतुं नथी अने भविष्यमा बनशे नहि.
शरीरनी ममता अने प्राणनी ममता ए बे जेना मनमां नथी ते ज मनुष्य कर्तव्यकार्यनो अधिकारी बने छे. संयोगे जेटली वस्तुओनो आत्मानी साथै संबंध थयो छे तेटली वस्तुओ खरेखर आत्मानी नथी तेथी संयोगी वस्तुओनो वियोग थवानो छे एवो पूर्ण निश्चय करीने आत्माद्वारा जे जे कर्तव्य कार्यो होय तेमां सर्व प्रकारनी भीतिनो त्याग करीने प्रवर्ततुं जोईए.
आत्मा विना अन्य कशुं आत्मानुं थयुं नथी, धतुं नथी, थशे नहि एवो निश्चय छे; तो नकामी भ्रान्ति धारीने भीतियो शा माटे धारण करवी जोईए? जे जे वस्तुओ आत्मानी वस्तुतः नथी एवी पौगलिक वस्तुओनी ममताथी भीति उत्पन्न थाय छे, भीतिथी आत्मा परभवमां रहीने नपुंसक जेवो पामर कायर - निःसत्व बने छे. तेथी शुंए श्रेय स्वपरनुं करी शकातुं नथी. कोई पण संयोगनो वियोग थवानो छे, छे ने छे ज; एमां कदापि अन्य फेरफार थवानो नथी, तो शा माटे बीवुं जोईए?
स्वाधिकारे विवेकपूर्वक कार्यमां प्रवर्ततां सर्वस्वार्पण करवामां भीतिनो एक विकल्प पण न थाय एवो निर्भय आत्मा ज्यारे थाय छे त्यारे आत्मामां स्थिरता थाय छे अने अस्थिरता टळी जतां सद्वर्तनना शिखरे आत्मा विराजमान थाय छे - एम अनुभवदृष्टिथी अवबोधवं.
भीति कर्तव्यभ्रष्ट बनावे छे.
जे मनुष्य नामरूपनी अहंवृत्तिना ताबे थईने मृत्यु वगेरे भीतियोथी व्हीवे छे अने तेथी कर्तव्यभ्रष्ट थाय छे तेओ विश्वमां दासत्वकोटीमा रहेवाने उत्पन्न थएला छे. तेओनुं भाग्य एक गरीब पशुना जेवुं दयापात्र देखाय छे.
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