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श्रुतसागर
मे-जून-२०१५ करवा नीकळ्या हता! एमनी साहसवृत्तिने, एमनी खुमारीने, एमनी निश्चलताने मूर्त रूप आपी शकाय. कोशा प्रत्ये एमनुं हृदय सहेज भी- होय अने एमनामां साधुसहज दया अने कोमळता पण होय. स्थूलिभद्रनुं चरित्रालेखन आरीते जीवंत बनावी शकाय पण आ कविनी कल्पना त्यां सुधी गति करी शक्ति नथी. कोशानी मोहिनीमा अडोल अजेय रहेनार स्थूलिभद्रनी मूर्ति ज एमना चित्तमां वसी छे, अने कोई पण प्रकारना नाट्यात्मक रूपने अभावे (कविए स्थूलिभद्रने जीभ पण नथी आपी!) स्थूलिभद्र साचे ज अहीं एक मूर्ति जेवा-पूतळा जेवा लागे छे. अवांतर प्रयोजनो काव्यने प्रगट थवामां केवा विघ्नरूप थता होय छे एनुं आ काव्य एक उदाहरण छे. ___यथार्थता, औचित्य अने प्रमाणभान के संयम ए कवि जिनपद्मसूरिना मुख्य गुणो छे. पदार्थने चित्ररूपे अने प्रसंगने नाट्यात्मक रूपे कल्पवानी एमनामां दृष्टि छे अने शब्दनी सूक्ष्म शक्ति तरफ एमनु लक्ष छे सादा अकृत्रिम रवानुकरणथी पण आपणां आंख-कानने वर्षानुं वातावरण कवि केव॒ प्रत्यक्ष करावी दे छे -
झरमर झरमर झरमर मेघ वरसे छे, खळखळ खळखळ खळखळ प्रवाहो वहे छे, झबझब झबझब झबझब वीजळी झबके छे, थरथर थरथर थरथर विरहिणीनुं मन कंपे छे.
रवानुकारी शब्दप्रयोग अल्प मात्रामा होय तो ज मधुर लागे, कविए ए मर्यादा जाळवी छे उपरांत, कविना प्रकृतिचित्रनी एक बीजी लाक्षणिकता अहीं ध्यान खेंचे छे. त्रण पंक्तिमा वर्षानुं वातावरण आलेखी चोथी पंक्तिमां कवि ए वातावरणमा विरहिणीना चित्तनी जे अवस्था थाय छे एने आलेखे छे. एटले के प्रकृतिचित्रनी अहीं कशी स्वतंत्र सार्थकता नथी, मानवभावने अर्थे ज कवि प्रकृतिचित्रने योजे छे. आखुये वर्षावर्णन विप्रलंभशृंगारनी सरस पीठिका बनी रहे छे.
जेम जेम मेघ मधुर गंभीर स्वरे गाजे छे तेम तेम
कामदेव जाणे के पोतानुं कुसुमबाण सज्ज करी रह्या १. झिरिमिरि झिरिमिरि झिरिमिरि ए मेहा वरिसति, खलहल-खलहल खलहल ए वाहला वहति, झबझब झबझब झबझब ए वीजुलिय झबकई, थरहर थरहर थरहर ए विरहिणिमण कंपई.६
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