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श्रुतसागर
मे-जून-२०१५ भागोथी आ भाग जुदो पडी जाय छे अने काव्यन संयोजन विसंवादी बनी जाय छे. स्थूलिभद्रना कामविजयनो महिमा पण कवि पांच-सात कडीमा विस्तारीने गाय छे. आम, काव्य एकसरखी के सप्रमाण गतिए चालतुं नथी अने काव्यना रसात्मक भागने छाई देनार नीरस कथन प्राचुर्य काव्यना पोतने ढीलुं बनावी दे छे.
पण आ परथी एक वात समजाय छे, अने ते ए के, आवडी मोटी कथाने आखी ने आखी फागुकाव्यमा उतारवानो कोईपण प्रयत्न बेहूदो बनी जाय एने बदले स्थूलिभद्र कोशाना मिलनप्रसंग उपर ज ध्यान केन्द्रित करQ जोईतु हतुं. जिनपद्मसूरिए आ सादी समज बतावी छे. कोशाने त्यां स्थूलिभद्र आवे छे त्यांथी ज एमणे काव्यनो आरंभ कर्यो छे अने स्थूलिभद्र चातुर्मास गाळी, संयमधर्ममां अडग रही, पाछा फरे छे त्यां काव्यने पूरु कर्यु छे.
पूर्ववृत्तान्तने गमे तेम वाचकने माथे मारवानी नहि पण एनो कलापूर्ण उपयोग करी लेवानी आवडत पण कवि पासे छे. कोशा-स्थूलिभद्रना बार वर्षना सेहनी वात कवि छेक स्थूलिभद्र साथेना संवादमा कोशाने मुखे मूके छे! कथातत्त्वनो आवो संकोच करी नाख्या पछी वर्णन अने भावनिरूपण माटे आ २७ कडीना काव्यमां पण कविने पूरती मोकळाश रही छे. आखं काव्य सरसतानी एक ज कक्षाए-भले मध्यम कक्षाए- चाले छे. काव्यना बधा ज अंगो-प्रारंभिक भूमिका, वर्षावर्णन, कोशाना सौंदर्य- अने अंगप्रसाधन- वर्णन, स्थूलिभद्र साथेनो एनो वार्तालाप, स्थूलिभद्रनी अडगता अने एनो महिमा-सप्रमाण छे.
रस पांखो पडी जाय एवो विस्तार नहि के रस पेदा ज न थाय एवो संक्षेप पण नहि. कोशानुं सौन्दर्यवर्णन जरा लंबायेलु लागे पण एथी काव्य पांखु पडतुं नथी. कोशा-स्थूलिभद्रनो संवाद टूको लागे, पण जेवो छे तेवोये ए व्यक्तित्वद्योतक छे. एकंदरे कविनी विवेकदृष्टिनो आ काव्य एक सुंदर नमूनो बनी रहे छे. धीमी, पण दृढ गतिए आलु काव्य चाले छे अने आपणा चित्त पर एक सुश्लिष्ट छाप मूकी जाय छे.
मध्यमकाळमां मात्र फागुओमा ज नहि पण सर्व काव्यप्रकारोमां काव्यना अंगोनी परस्पर समुचित संघटना प्रत्ये ज्वल्ले ज ध्यान अपायुं छे, त्यारे आपणा पहेला फागुकाव्यना कविए बतावेली आ सहज सूझ आदरपात्र बनी रहे छे. ___ जिनपद्मसूरिए वृत्तान्तने संकोच्यु, तो जयवंतसूरिए वृत्तान्तनो लोप ज कर्यो एम कही शकाय. विरहिणी कोशाने स्थूलिभद्र मळ्या एटलुं ज वृत्तान्त काव्यमां-अने ते पण छेवटना भागमां-आवे छे. कोशानी विरहावस्थाना एक ज बिंदु उपर कविनी कल्पना ठरी छे. मोटा विस्तारने बदले एक ज बिंदु उपर प्रवर्तवानु आव्यु होवाथी ए
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