SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 38 श्रुतसागर मे-जून-२०१५ पण वसंतवर्णननी पेठे काव्यना मुख्य प्रसंगनी बहार होय छे. नेमराजुलना फागुओमां, आगळ कर्तुं तेम, कृष्ण अने एनी पटराणीओना संयोगशृंगारना चित्रो आवता होय छे, पण राजुलनु तो मात्र सौन्दर्यवर्णन ज! स्थूलिभद्र तो कोशाने त्यां बार वर्ष रह्या हता छतां, ए वेळाना संयोगशृंगारने केन्द्रमा राखी फागुकाव्य लखवानी कोई जैन कविए हिंमत करी नथी. एटले स्थूलिभद्र विषेना फागुओमां तो निरपवाद रीते विप्रलंभशृंगार ज आवे छे. प्रस्तुत लणे फागुओमां पण एवु ज थयु छे. फेर एटलो छे के जयवंतसूरि कोशाना हृदयभावोने ज व्यक्त करे छे, ज्यारे बाकीना बंने कविओना काव्योमां भावनिरूपण करतां सौन्दर्यवर्णन घणु वधारे स्थान रोके छे. मध्यकाळमां काव्यनो प्रकार घणीवार एना आंतरस्वरूप उपरथी नहि, पण एकाद बाह्य लक्षण उपरथी निश्चित थतो. फागुकाव्यने नामे बोधात्मक, माहितीदर्शक के स्तोत्ररूप रचनाओ पण आपणने मळे छे, केमके एमां फागुनी देशीने नामे ओळखातो दुहाबंध प्रयोजायेलो होय छे. आंतरस्वरूपनी दृष्टिए फागु कथनात्मक करता विशेष तो वर्णनात्मक अने भावनिरूपणात्मक होवू जोईए छतां कथन, वर्णन अने भावनिरूपणनुं आ तारतम्य बधा फागुओमा एकसरखं रहेलुं जोवा मळतुं नथी. ___ नानकडा ऊर्मिकाव्यथी मांडीने विस्तृत लोकवार्ता के रासाना वस्तुने व्यापती रचनाओ सुधीन वैविध्य फागुकाव्यो धरावे छे. आपणा अवलोकनविषय त्रण फागुओ आ प्रकारना वैविध्यना लाक्षणिक नमूनारूप छे. टूकमां कहेवु होय तो एम कहेवाय के मालदेवतुं काव्य मुख्यत्वे कथनात्मक छे, जिनपद्मसूरिनु मुख्यत्वे वर्णनात्मक छे अने जयवंतसूरिनु मुख्यत्वे भावनिरूपणात्मक छे. आ लणे काव्योनी वस्तुपसंदगीने अने एथी काव्यनी संघटना पर पडेली असरने आपणे जरा विगते जोईए. स्थूलिभद्रना जीवननी मुख्य घटनानी आसपासनो कथासंदर्भ घणो विस्तृत छे एवात आगळ थई गई छे. स्थूलिभद्रना पिता महामात्य शकटाल अने पंडित वररुचि वच्चे खटपट थाय छे, एने परिणामे कुटुंबने बचाववा शकटाल जाते पोताना पुल श्रीयकने हाथे हत्या वहोरी ले छे, कोशाने त्या बार वर्षथी रहेता स्थूलिभद्र पिताने स्थाने मंत्रीपद स्वीकारवाने बदले आ बनावोने कारणे संसारथी विरक्त थई दीक्षा ले छे, एक चातुर्मास कोशाने त्यां गाळी, संयमधर्म पाळी, कोशाने उपदेशी पाछा वळे छे. सिंहगुफावासी मुनि स्थूलिभद्र प्रत्येनी इर्ष्याथी कोशाने त्यां चातुर्मास गाळवा जाय छे अने कोशाने लीधे ज संयमधर्मथी पडता बची जाय छे, कोशाने राजा एक For Private and Personal Use Only
SR No.525300
Book TitleShrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy