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SHRUTSAGAR
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MAY-JUNE-2015
नथी अहीं सुधी तो ठीक, पण आश्चर्यकारक वात ए छे के आ जैन मुनि काव्यने अंते फलश्रुति दर्शावता 'आ काव्य गाता प्रतिदिन स्वजनमिलननुं सुख मळशे एवो आशीर्वाद पण आपे छे! 'वसंतविलास' ने जैनेतर कृति गणवा माटे एमांना विरतिभावना अभावने आपणे महत्त्व आपीए छीए पण कोईक जैन कवि, क्यारेक तो विरती भावनी वळगणमांथी मुक्त थई शके छे एनुं आ केवुं ज्वलंत दृष्टांत छे !
आ कवि आरंभमां मात्र सरस्वतीनी ज स्तुति करे छे (बीजा बन्ने काव्योमां सरस्वतीनी साथे-साथे पार्श्वजिनेन्द्रनी पण स्तुति थयेली छे) ए पण जैन कवि सांप्रदायिकतामांथी केटली हदे मुक्त थई शके छे एनुं एक सरस दृष्टांत छे. स्थूलभद्रकोशा नामनी व्यक्तिओने एमणे विप्रलंभशृंगारना आलेखन माटे आधार रूपे लीधी एटली एमनी सांप्रदायिकता गणवी होय तो गणी शकाय.
वैराग्यभाव दर्शाववा माटे फागुकाव्यना नायक तरीके कोई जैन मुनिनी ज पसंदगी करवी जैन कविओने वधारे अनुकुळ पडे छे आमांथी ज जैन फागुओनी एक बीज लाक्षणिकता जन्मे छे जैन मुनिओ तो रह्या विरक्तभाववाळा एमनो वसंतविहार केम आलेखी काय? आथी जैन फागुओमां वसंतवर्णन आवे त्यारे ए काव्यनी मुख्य घटनानी बहार होय छे, जेमके नेम-राजुलना फागुकाव्योमां वसंतविहार नेम-राजुलनो नहि पण कृष्ण अने एनी पटराणीओनो आलेखाय छे. केटलीकवार तो वसंतऋतुने बदले वर्षाऋतुनी भूमिका स्वीकारवामां आवे छे, केमके जैन मुनिओ चातुर्मास एक ज स्थले गाळता होय छे. अहीं जिनपद्मसूरि अने मालदेवनी कृतिओमां प्रसंग वर्षाऋतुमां
मुकायेलो छे. जयवंतसूरिए वसंतऋतुनी पीठिका लीधी छे, पण ए एम करी शक्या नुं कारण ए छे के एमणे स्थूलभद्रना आगमन पहेलानी कोशानी विरहावस्थानुं ज वर्णन करवा धार्युं छे.
जैन फागुओनी त्रीजी लाक्षणिकता काव्यमां शृंगारना स्थान अने स्वरूपमां रहेली छे. जैन फागुकाव्योनो शृंगार बहुधा विप्रलंभशृंगारना स्वरूपनो होय छे. नायिका प्रेम घेली होय पण नायक जो संस्कारविरक्त होय तो संयोगशृंगार केम संभवे? परिणामे एकपक्षी प्रेम अने एमांथी स्फुरतो अभिलाषनिमित्तक विप्रलंभशृगार जैन फागुकाव्योम जोवा मळे छे.
घणीवार तो आवा प्रेमभावनीये अभिव्यक्ति द्वारा शृंगाररस स्फुट करवाने बदले अंगसौन्दर्यना अने वस्त्राभूषणोना वर्णनोमां ज जैन कविओए शृंगाररसनी पर्याप्ति मानी लीधी छे. संयोगशृंगार क्यारेक जैन फागुओमां आवे छे, पण त्यारे ए
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