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उमेटा मंडन संभवनाथ जिन स्तवन
मुनि श्री सुयशचंद्रविजय भक्तिनी लीलाशनो एक पर्याय एटले साहित्यनो स्तवन प्रकार... कवि हृदये अनुभवेली भावसृष्टिनु स्पर्शन माणी शकाय छे, स्तवनना माध्यमे...
भक्तिरस सभर एवं ज एक संभवनाथ परमात्मानुं स्तवन अने प्रकाशित कर्यु छे. परमात्मानी आंगी अने स्वरूपना वर्णनथी रचनानो प्रारंभ थयो छे. स्तवन कुल १३ कडीओमां पूर्ण थाय छे.
कृतिनी दशमी कडीमां मही नदीना तटे उमेटानो अने ए समयमां त्यांना राजा नाहरसंघ(नाहरसींघ)नो उल्लेख थयो छे. तो छेल्ली कडीमां उमेटाना श्रावकोनो अने एमनी आराधनानो पण अछडतो उल्लेख जोवा मळे छे. कृतिनी अंतिम कडीमां जणाव्या अनुसार कविए वि. सं. १८७२मां आ कृतिनी रचना करी छे.
कृतिना अंते पोताना गुरुनो उल्लेख जोतरत्न स्वरूपे कर्यो छे. जे प्रायः जीतरत्न होवा संभवे छे. उमेटामा ज कविए आ स्तवननी रचना करी होय एवी संभावना छे. ए सिवाय अन्य कोई विगत प्राप्त थई नथी.
उमेटा मंडन संभवनाथ जिन स्तवन
॥नदिदी) जमुना केरा तीर उडे दोइ पंखीआ - ए देशी॥ संभव जिननी आंगी मुझ मन अति वसी, नी(नि)रखीत लोचन नीरथी हृदयकुंपल हसी। मुखकमलनो कटको चंद समो उपतो, अमीअ झरे निज अंग के ससीनें जीपतो ॥१॥ रूपे मनोहर दिनकर तेजे दीपतो, शांत स्वभाविं प्रभुजी वेरीने जीपतो। राग धे(द्वे)ष दोअवेरी कषाय छांडी करी, थआ अनुभव वरराजा किं(कें) सी(शि)वरमणी वरी ॥२॥
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