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गुरुवाणी
आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजी
क्लेश त्याग यात्राळुओए तीर्थस्थळोमां जइ क्लेश करवो नहि. तीर्थनी यात्रा कर्या पहेलां घरमां, कुटुंबमां, व्यापार विगेरे बाबतोने लइ अनेक मनुष्योनी साथे क्लेश को होय तेनो स्थिर चित्तथी पश्चात्ताप करवो.
जे जे जीवोनी साथे क्लेश थयो होय तेओने खमाववा. ज्यां सुधी क्लेश करवानी प्रवृत्ति छे त्यां सुधी हृदयनी शुद्ध थती नथी. तीर्थमां कोइनी साथे क्लेश थाय एम बोलवू नहि. कोइनी निंदा करवी नहि. कोइD मर्म हणाय एवं खराब वचन बोलवू नहि. दास दासीओने पण क्लेशथी धमकाववा नहि. पूजा विगेरे बाबतो माटे पण क्लेश करवो नहि.
क्लेशथी मनमां क्रोधादि अनेक दुर्गुणो प्रगटे छे अने तेथी यात्राना फळनो पण नाश थाय छे. क्लेशथी पोतार्नु अहित थाय छे अने सामा मनुष्यो, पण अहित थाय छे.
तीर्थना स्थानमां कोई पण जीवोनी निंदा करवी नहि, कारण के क्लेश, निंदा विगेरे दोषोनो त्याग करवाने माटे तो तीर्थनी यात्रा करवानी छे. तेथी तीर्थमां गया बाद तो क्लेश, निंदाने जलांजलि आपवी जोईए. प्रभुए क्लेश अने निंदा दोषनो त्याग कर्यो हतो, ते प्रमाणे मारे पण दोषनो त्याग करवो जोईए.
घर करतां पण तीर्थोना स्थळमां साधुओ साधुओमां, साध्वी साध्वीओमां तेमज श्रावक अने श्राविकाओमां, परस्परनी निंदा अत्यंत थती होय तो समजवू के तीर्थ यात्रानो शुद्ध उद्देश यात्राळुओ समज्या विना पवित्र थवा मागे छे, पण ते शी रीते पवित्र थई शके! ज्यां निंदा अने क्लेशनुं स्वप्न पण न जोइए, त्यां निंदा अने क्लेशनी धमाल चालती होय तो तीर्थनी यात्रा करनाराओनी पवित्रता-शुद्धता शी रीते रही शके, ते विचारवू जोइए.
क्लेश अने निंदाखोर यात्राळुओ तीर्थमा रहेला मनोवर्गणादि शुभ पुद्गल स्कंधोने पण अपवित्र करी तीर्थनुं स्थान बगाडे छे, पोते बगडे छे अने बीजाओने बगाडे छे. एवा क्लेशथी यात्राळुओ पोते तरता नथी अने बीजाओने तारवा समर्थ
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