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श्रुतसागर
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जनवरी-फरवरी - २०१५ कर्ता सोमेश्वर ते घणुं करीने कीर्तिकौमुदी अने सुरथोत्सव काव्योनो कर्ता गुर्जरेश्वर पुरोहित सोमेश्वर होवानो संभव छे.
हेमचंद्राचार्यना प्रधान शिष्य महाकवि रामचंद्रना नाटक समूहमां (वनमालिकानाटिका (नं. १११) अने मल्लिकामकरंदनाटक' (नं. १२३) बंने अद्यापि अप्राप्त छे. वेणीसंहार ए प्रसिद्ध अने प्रचलित नामने बदले आ यादीमां वेणीसंवरण आपेलुं नाम विचारणीय छे.
नाटकग्रथितवस्तुने ए नाम वधारे अनुगत लागे छे, अने Montgomery Schuyler ना ABibliography of the Sanskrit Drama (संस्कृत नाटक ग्रन्थसूचि) नामना ग्रंथमां पण एक जग्याए ए नाम मळी आवे छे खरुं. पं. रामचंद्रकृत प्रबंधशतनुं नाम खास ध्यान खेंचे छे. ___ आ पं. रामचंद्र ते उपर जणावेला हेमाचार्यशिष्य महाकवि रामचंद्र ज छे. प्रबंधचिंतामणि वगेरेमां रामचंद्रने प्रबंधशत कर्ता- खास विशेषण लगाडेलु मळी आवे छे. ते उपरथी केटलाक विद्वानो एम समजता हता के रामचंद्रे एकंदर बधा मळीने १०० प्रबंधोनी रचना करी हशे अने तेना लीधे तेमने आ विशेषण प्राप्त थयुं हशे. परंतु आ उल्लेख जोतां प्रबंधशत ए शतसंख्यापरिमित प्रबंध सूचक नथी पण ए नामनो आ खास ग्रंथ ज तेमणे करेलो हतो, एम हवे स्पष्ट समजाइ जाय छे.
आ ग्रंथ खास करीने साहित्यनी रचनाविषयक होवो जोइए कारणके यादीमां द्वादशरूपक-नाटकादिस्वरूपज्ञापक तरीके आनो जे टुंको परिचय आप्यो छे ते उपरथी तदंतर्गत विषयनो आभास थइ जाय तेम छे.
बीजी एक वात पण एमां ध्यान आपवा लायक छे. साधारण रीते अन्यान्य साहित्यरचना विषयक ग्रंथोमां रूपक दस गणाव्या छे अने ए संख्याने लइने धनंजये पोताना ग्रंथनु नाम पण दशरूपक राख्युं छे. परंतु आमां रूपकनी संख्या बारनी आपी छे.
कविना गुरु आचार्य हेमचंद्रे पोताना काव्यानुशासनमां, जे बार वस्तुओ रूपक तरीके आपी छे तेने ज वधारे विस्तृतरूपमां अने प्रमाणरूपमा स्थापित करवा माटे तो आ ग्रंथमा प्रयत्न करवामां न आव्यो होय? ग्रंथ- श्लोक प्रमाण जोतां ते घणो विस्तृत अने विशेष विवेचनवाळो होवो जोईए. एकला रूपकनी ज चर्चा करतो आटलो मोटो ग्रंथ संस्कृतमां बीजो सांभळवामां नथी. १. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद द्वारा प्रकाशित
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