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श्रुतसागर
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जनवरी-फरवरी - २०१५
मेरूपर्वत पर रहेली चूलानी पेठे सूरिजीए चंद्रगच्छरूपी पर्वत पर चूला रूप साध्वी शिवचूला गणिनीने महत्तर पद आप्युं तेमज पंडितपद प्रदान करता अपाती वर्धमान विद्या जापनी तथा सूरिजीना हस्ते थती दीक्षानी नोंधो सोळमां-सत्तरमां नंबरना पद्यमां कवि वडे टंकाइ छे. त्यारपछीना पद्योमां सूरिजीनी निश्रामां थयेली प्रासाद प्रतिष्ठानो तेमज जिनबिंब प्रतिष्ठानो अछडतो उल्लेख करे छे.
कवि सूरिजीनी निश्रामां थयेली छ महिनाना तपनी, सूरिजीना विशिष्ट चारित्रसंपन्न मुनिओनी, सूरिजीए रचेल चतुःशरण प्रकीर्णकना भाष्य तथा चूर्णिनी, अल्प जीवोना बोध माटे सूरिजीए रचेल बालावबोधनी, आलोचना ग्रहण करता परपक्षना अनुयायीओनी, बादशाह सुरत्राण पासेथी फरमान मेळवी गुणराजे काढेली संघयात्रानी, गोविंद श्रेष्ठिना (तारंगागिरि परना अजितनाथ जिनालयना) प्रतिष्ठा महोत्सवनी, तथा धरणा शाह शेठना ( राणकपुर ) चतुर्मुखजिनालयना प्रतिष्ठा प्रसंगनी महत्त्वपूर्ण विगतो बहु ज ओछा शब्दोमां कवि नोंधे छे.
सूरिजीना आंतरिक गुणवैभवनी तथा बादशाह महम्मद खीलजीए करेली पाटण (?) नी दुर्दशाने सूरिजीना पुण्यप्रभावे फरी केवी मनोहर करी ते वातनो आबेहूब चितार कविए त्यारपछीना सात पद्योमां रजू कर्यो छे. पछीना पांच पद्योमां कविए सूरिवियोगनी अद्भुत कल्पना आलेखी छे.
वियोगनी वातने रजू करता कवि कहे छे के जेम रात्रिए सूर्य विना चक्रवाकनो समूह वियोगथी व्याकुळ थाय छे तेम सूरिजीना वियोगथी जीवसृष्टि शोकातुर थाय छे. आ वियोगरूपी दुःखनो विनाश करवामां सूर्य समान हे सूरिजी तमे दर्शन आपीने चक्रवाक समान जीवसृष्टिना दुःखनो विनाश करो.
जे कमळ सूर्य वगर सुशोभित थतुं नथी तेम आ भरतखंड आपना वगर सुशोभित नथी थतो. जेम जीव विगरनुं शरीर व्यर्थ छे. तेम सूरिजी वगर पृथ्वी असार जणाय छे.
सूरिजीना जीवनमा एक पण दोष पोतानो प्रभाव बतावी शक्या नथी. ए वातने जणावता कवि जणावे छे के जेम धूमाडानी धूणिथी मच्छरादि जीवजंतुना त्रास दूर थाय छे, तेम तमारा जीवनमांथी मत्सरादिनो त्रास दूर थयो हतो. एवी ते माया, क्रोध, लोभ विगेरे दोषो माटे पण विविध उपमा अलंकारोथी कविए दोष रहित जीवननुं सुंदर चित्रण प्रस्तुत कर्तुं छे.
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