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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 50 SHRUTSAGAR NOVEMBER-2014 केटलाक मनुष्योने प्रकृतिने अनुकूळ धर्म पसंद आवे छे. वेदान्त भागवत धर्ममां प्रकृतिने अनुकूळ धर्मनी मान्यता संबंधी विशेष व्यवस्था देखाय छे, केटलाक मनुष्योने बुद्धिनी प्रधानताए धर्म पसंद आवे छे. बौद्ध वगेरे दर्शनो बुद्धिवादनी अपेक्षाए धर्मने माने छे. केटलाक मनुष्योने इश्वर कर्तृत्ववाळो धर्म पसंद पडे छे, त्यारे केटलाकोने तेनाथी विरूद्ध धर्म पसंद पडे छे, केटलाक मनुष्योने साकार इश्वर मानवो पसंद पडे छे त्यारे केटलाकोने निराकार इश्वर मानवो पसंद पडे छे. दृष्टि सृष्टिवाद, विवर्तवाद, परिणामवाद, स्याद्वाद, एकांतवाद, नित्यवाद, अनित्यवाद, वगेरे सर्व मतो भिन्न भिन्न बुद्धिथी प्रगटेला छे. तेमां जेने जे पसंद पडे छे ते तेने माने छे. __ आ ग्रंथमां जैनेतर वेद वेदान्तादि दर्शनीय शास्त्रोथी आत्माना तत्त्वोनी मान्यता सिद्ध करवामां आवी छे. अने जैन तत्त्वो संबंधी श्री शंकराचार्य वगेरेना विचारोनी समालोचना करवामां आवी छे. समालोचनामां जैनतत्त्वोनी मान्यता योग्य छे एवी दिशा दर्शावी छे. दुनियामां जेटलां दर्शनो थयां तेओनां तत्त्वो वगेरेनी मान्यताओगें परस्पर खंडन-मंडन थया विना रह्यं नथी. जो दरेक धर्मना तत्त्वोने पक्षपात विना शुद्ध बुद्धिथी अने तटस्थताथी तपासीने एमांथी सत्य तत्त्व तारववामां आवे तो एना वडे मनुष्यने लाभ थाय छे. आ ग्रंथमा योगनिष्ठ आचार्यश्री जणावे छे के परमात्मापदनी प्राप्तिमा अनेक अज्ञानना पडदाओ आवे छे, माटे रागद्वेषनो त्याग करीने धर्मशस्त्रोद्वारा धर्म तत्त्वोनो अनुभव करवो जोईए. देश, धर्म, समाज धर्म, नीति, राष्ट्र प्रेम, मोक्ष धर्म वगेरेनुं सम्यग् स्वरूप प्रतिपादन करनारा तीर्थंकर प्रभुओना उपदेशनो अनुभव करवो जोईए. रागद्वेषनो सर्वथा क्षय करीने जेने त्रण गुणनी पेली पार केवलज्ञान पामीने उपदेश आप्यो छे. एवा चोवीसमां तीर्थंकर महावीर प्रभुना सिद्धांतोतुं श्रवण, वाचन अने मनन करीने आत्मादि तत्त्वोनो अनुभव मेळववो जोइए. श्री महावीर प्रभुए केवलज्ञान पामीने सर्व धर्मोमां रहेला सत्योने अपेक्षाए समजाव्यां छे. अने तेथी सर्व धर्मोना सत्योमा जे मतकदाग्रह हतो ते दूर कर्यो छे, तेथी गुरूगम लइ जे कोइ जैनागमोने वांचशे ते आत्मादि तत्त्वोना सत्यने पामशे अने सर्व धर्मोपर थता रागद्वेषने दूर करी समभाव प्राप्त करी परमात्माने प्राप्त करशे एम मने अनुभवे समजाय छे. धर्मादि सर्व बाबतोना अपेक्षावादने समजावी मतकदाग्रह पक्षपात अज्ञानताने दूर करावनार श्री महावीर प्रभुना उपदेशनी जेटली स्तुति करीए तेटली थोडी छे. आ ग्रंथमां पूज्यश्रीए जैनेतर वेदांतादि दर्शनीय शास्त्रोथी आत्माना तत्त्वोनी For Private and Personal Use Only
SR No.525295
Book TitleShrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size7 MB
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