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श्रुतसागर
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नवम्बर २०१४
एळे जाय छे तेने पण तुं जाणतो नथी. तने वैराग्य दशा केम जागती नथी? हे चेतन ! तुं मोहथी अंध बनीने पोतानुं स्वरूप केम भूले छे? तुं आत्मानी शुद्धतानो पुरूषार्थ कर. काल, स्वभाव, नियति, कर्म अने उद्यम ए पांच कारणोथी कार्यनी सिद्धि थाय छे. दरेक कार्यनी सिद्धिमां आ पांच कारणोनो समूह होय छे.
कर्मराशिनो सर्वथा नाश अने आत्मानी मुक्तिमां पांच कारणोनो समवाय होय छे. तेमां उद्यमनी प्रधानताए अन्य कारणोनो समुदाय पण सहचारी छे. कोइ स्थळे कर्म बळी होय छे अने कोई स्थळे उद्यम बळवान होय छे. करोडो रीते अत्यंत उद्यम करतां पण आत्मबळने कर्म हठावे त्यारे समजवुं के उद्यम करतां कर्म बळवान छे. पहेलांथी कर्मनो उदय बळवान छे एम मानी आत्मपुरुषार्थथी भ्रष्ट न थवुं. समये समये दरेक कार्य प्रति पंचकारणनो समवाय होय छे. ज्यां कार्यनी सिद्धि थती नथी त्यां पांच कारणोनो समुदाय मळ्यो नथी एम गणी शकाय. पांच कारणना समुदाय विना एकादि हेतुथी कार्यनी सिद्धि थाय छे, एम मानवुं मिथ्यात्व छे. श्री मणिचंद्रजी आत्माना गुणोनुं गान करीने एनो आनंद माणी रह्या छे.
श्रीमद् ‘आत्मदर्शन' ग्रंथनी सज्झायोमां आवता आत्मा-परमात्मा, अंतरात्मा, देह अने मन, चार कषायो, सम्यग्दृष्टि, गुंठाणा, निन्दा, विकथा, आत्मरमणता, क्रोधादि वासनाओ वगेरे अनेक विषयोनी छणावट अध्यात्मिक दृष्टिए करीने सज्झायोमा रहेला विषयोने सरळ रोचक शैलीमां जिज्ञासुओने समजाय ते रीते विवेचन कर्तुं छे. आत्माने केन्द्रमां राखी आत्मामां ज सुख छे, स्वतंत्रता छे अने परमां दुःख, परतंत्रता छे माटे तुं आनंदरस पामवा बाह्य साधनोनो उपयोग करीश नहि. आत्मामां ज स्थिर थई सुख भोगव.
आत्मतत्त्व दर्शन - पृ. १००
देव, गुरू अने धर्म ए aण तत्त्वोमां सर्व धर्मनी मान्यताओनो समावेश थाय छे. सर्व धर्मना शास्त्रोमां देवगुरू धर्म संबंधी परस्पर विरूद्ध भिन्न भिन्न मान्यताओ दर्शावेली जोवा मळे छे. विश्वनो मोटो भाग पोतपोतानी मति अनुसार देवगुरू धर्मने माने छे अने भविष्यमां मानशे. जे तत्त्वो अनादिकाळनां छे ते अनंतकाल पर्यंत रहेवानां, बाकीनां तत्त्वो तो नष्ट थया विना रहेशे नहि. दरेक दर्शनमां अमुक तत्त्वोनुं प्रतिपादन करवामां आव्युं होय छे, परंतु ते तत्त्वो पण परस्पर धर्मना तत्त्वज्ञोने विरूद्ध असत्य लागे छे.
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