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श्रुतसागर
7
अक्तूबर २०१४
यदि आप जीवन में आगे बढ़ जाएं, तो ज्ञानीयों ने कहा कि आपके मुंह पर भी कर्म राजा धूल डालता है । धिक्कार है तुम्हें। धर्म तुम्हारे जीवन का परम कल्याणकारी मित्र है । उसको छोड़कर तुम इतने आगे बढ़ गए ? आत्मा और धर्म को छोड़कर यदि आगे बढ़ोगे तो मुँह पर धूल पड़ेगी । धिक्कार है ऐसे जीवन को । इस जीवन का कोई मूल्य नहीं है, कोई महत्त्व नहीं है । तिरस्कार के योग्य है ऐसा जीवन ।
योगी पुरुष ने बहुत सुंदर ढंग से उसको समझाया, कहा- कि तू इसे छोड़ दे। कैसी भी तुझे भूख लग जाए, उपेक्षा कर दे। यदि प्राण चला जाए तो भी चिन्ता न कर। वह तो जाने वाला है ही। दो दिन पहले चला जाए तो क्या हुआ । अतः इसके हाथ कभी मत खाना। वरना तुम्हारे अंदर की सारी उदार वृत्ति नष्ट हो जाएगी। न जाने भवान्तर में कहाँ किस योनि में जन्म लेना पड़े? सियार कहता है 'और कुछ नहीं, अगर इसका पेट खा लूँ तो, योगी ने कहा कि 'यह तो पाप का गोदाम है।'
अन्यायोपार्जितवित्तपूर्णमुदरम्।
अन्याय से उपार्जन किए हुए द्रव्य से इसने अपना पेट भरा है। कभी नीति और न्याय का पैसा इसके पेट में नहीं गया। कभी भूल कर के इस पेट का भक्षण मत करना। यह तो पाप का गोदाम है। बिचारा सियार विचार में पड़ गया। एक-एक अंग को लेकर के उसने चाहना की। कि भगवन्! यदि आपकी इच्छा हो तो इसको खा लूं । आखिर में सियार ने कहा 'भगवन्! इसके माथे को ही खा लूँ।'
योगी पुरुष ने कहा 'यह तो पाप की पार्लियामेंट है। सारे दुर्विचार वहां से ही पैदा हुए। इसके अंदर पाप की मति है ।
गर्वेण तुंगं शिरः
बड़े गर्व से इसने अपने माथे को ऊपर रखा है। इस सिर का भक्षण मत करना । नहीं तो अहंकार प्रवेश कर जाएगा। ये सारे पाप के विचार तेरे अंदर आ जाएंगे। उसका परिणाम तू जानता है । भवान्तर में बुद्धि मिलेगी नहीं, निर्बुद्धि होगा । इसलिए भूल कर भी इसके माथे का भक्षण मत करना' ।
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(क्रमश:...)