SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 17 अक्तूबर २०१४ १३. मानतुंग मानवती रास, पत्र संख्या- ३२, प्रत क्रमांक- ५७७६५ संवत् १७७० वर्षे चैत्र वदि ११ तिथौ गुरुवासरे श्रीशेखपुरमध्ये लिख्यों छई ॥ परमगुरुभट्टारक श्रीश्री १०८ श्रीहीरविजयसूरिश्वर. लेखकपाठकयो र्शुभंभवतु ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु ॥ १४. सारस्वत व्याकरण सह टीका, पत्र संख्या - १७, प्रत क्रमांक - ६०८३५ श्रीमत्तपागच्छश्रृंगारहार जगद्गुरुवि (बि) रुदधारक भटारक श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीहीरविजयसूरीशिष्य उ. श्री १०८ श्री कनकविजय तच्छिष्य श्री १०८ श्रीमहोपाध्याय पुण्यविजयतच्छिष्य पंडित श्री १०८श्रीगुणविजयतच्छिष्यविनयेन पंण्डितशिरोमणि पंण्डितश्री १०८ श्रीमानविजय तच्छिष्य सकलपंडित श्री १०८ श्रीविमलविजय तच्छिष्य पंडित वि (वी) रविजय तच्छिष्य सकलशिरोमणि प्रधानपण्डित अमि (मी) विजय तच्छिष्य पं. रामविजय तच्छिष्य पं. श्री १०८ श्री पं. तिकमविजय तच्छिष्य पं. मोहनविजय लपिकृतम् स्ववाचनार्थं ॥ संवत् १९१४ फाल्गु मासे शुक्लपक्षे तिथौ १ प्रतिपदायां भानुवासरे लिखितं ॥ वृधिविजय पठणार्थं ॥ १६. उपधान विधि, पत्र संख्या - ०९, प्रत क्रमांक - ६२९५२ ० ग. = गणि o पं. = पण्डित ० उ. = उपाध्याय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीहीरविजयसूरिश्वरतत्शिष्य तेजविजय गणिना लेखि । नविननगरे ॥ संवत् १६४३ वर्षे पोस वदि १ दिने शुक्रवासरे ॥ शुभं भवतु ॥ श्रीरस्तु ॥ श्री ॥ छ ॥ संसूचि ० ठा. = ठाकुर, ठक्कर ० पू. = पूज्य ० मु. = मुख्य For Private and Personal Use Only १. प्रशस्तिनी नोंध मात्र अहीं सुधी मळे छे. अहींथी आगळनी प्रशस्ति स्याहीथी नष्ट थयेली छे.
SR No.525294
Book TitleShrutsagar 2014 10 Volume 01 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy