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SHRUTSAGAR
AUGUST-2014 लिए भी कोई तैयार नहीं होता। मोहल्ले वाले बाहर से लोग बुलाकर उस लाश को निकलवा देते हैं और जंगल के अन्दर किसी एकान्त स्थान पर ले जाकर उस लाश को डाल दिया जाता है।
कहीं किसी पापी व्यक्ति की ऐसी ही मृत्यु हुई। वहाँ कोई योगी पुरुष अपनी साधना में अपूर्व आनन्द ले रहा था। एकान्त वातावरण था। प्राकृतिक सुन्दरता बिखरी हुई थी। ऐसे मंगलमय वातावरण में भी अचानक उसके मन में जरा चंचलता
आई। विकृति आ गई। भाव में आवेश का प्रवेश हो गया। योगी पुरुष ने विचार किया कि आज यहाँ आस-पास का वातावरण कुछ दूषित नजर आता है।
मेरे ध्यान में, साधना में, चित्त की एकाग्रता में यह व्यग्रता कैसे आ गई? मेरे भाव के अन्दर आज आवेश का प्रवेश कैसे हो गया? जरूर कहीं आस-पास दृषित वातावरण हुआ होगा। निरीक्षण किया। आत्मगवेषक व्यक्ति बड़ा जागृत रहता है। निरीक्षण के बाद उनको मालूम पड़ा, किसी व्यक्ति की लाश लाकर कोई वहाँ डाल गया है। जंगल के भूखे प्राणी वहाँ आ गये, लाश को सूघंने लगे। वन्य प्राणियों में सियार को बडा चालाक माना जाता है। कहावत में जंगल का राजा सिंह बताया जाता है। उसको एक दिन एक धुन सवार हुई। जितने भी उसके दरबार में प्राणी थे, सभी को बुलाया। सिंह के आमन्त्रण को कौन अस्वीकार करे? सभी आये। एक-एक को बुलाकर उसने कहा कि हमारे किसी साथी ने कहा है कि तुम्हारे मुँह से बडी दुर्गन्ध आती है। बास आती है। क्या यह सच है? मुझे मेरी दुर्गन्ध मालूम नहीं पड़ती; तुम सँघो तो? बेचारे बकरी वगैरह सब आये। आकर सूंघने लगे। मुँह तो गटर है। दुर्गन्ध तो आयेगी ही। वैसे ही उन्होंने वहाँ कह दिया - हाँ हजूर, जो आपने कहा वह बिल्कुल सच है। आपके मुँह से जरा दुर्गन्ध तो आती है। ___बडा अप्रिय लगा सिंह को शब्द और उसने उसी समय उन पर आक्रमण किया
और उन्हें मौत के घाट उतार दिया। जितने भी जानवर वहाँ आये थे, सबके साथ इसी प्रकार का व्यवहार हुआ। सियार सावधान था, जब उसका नम्बर आया और उसे बुलाकर पूछा कि जरा बताओ तो सही कि यह दुर्गन्ध मेरे मुँह से आती है या नहीं? ये जानवर तो इस प्रकार कह कर गये हैं। तुम बताओ कि सत्य क्या है?
सियार ने कहा हजूर! आपका आदेश मुझे शिरोधार्य है, परन्तु मुझे जोर की सर्दी लगी हुई है। जुकाम लगा है। नाक काम नहीं करती। मैं सूंघू तो भी खुशबू या बदबू मालूम नहीं पड़ती। इस तरह वह बच गया। वह अपनी होशियारी से, वाणी की चतुराई से बचा। अन्य जिनते भी आये, सब मौत के घाट उतर गये। सियार का यह कहना कि मुझे सर्दी लगी है। मालूम नहीं पड़ता दुर्गन्ध है या सुगन्ध।' उसकी चतुराई थी।
(क्रमशः)
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