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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दश ब्रह्मचर्य समाधिस्थान कुलक संजयकुमार झा कृति का संक्षिप्त परिचय - दोहा, चौपाई व छंद में ग्रथित यह कृति ब्रह्मचर्य १० समाधिस्थान कुलक, नववाड व नववाडि सज्झाय के नाम से प्रचलित है. इसके कर्ता नागपुरीय बृहत्तपागच्छीय आचार्य श्री साधुरत्नसूरि के शिष्यरत्न आचार्य श्री पार्श्वचंद्रसूरि हैं. इन्हें लोकख्यात नाम आचार्य पासचंद व आचार्य पासचंदसूरि के नाम से भी लोग जानते हैं. यह कृति ४१ गाथाबद्ध भाषा मारुगूर्जर में अनुमानतः विक्रम की १६वीं सदी में रची गयी है. रचनास्थल का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, फिर भी कर्ता का विचरणक्षेत्र विशेषरूप से राजस्थान व गुजरात होने से इन्हीं दो प्रदेशों में से कहीं एक जगह होना प्रतीत होता है. तत्कालीन राजस्थान व गुजरात में प्रयुक्त ग्राम्यभाषा का सरस प्रभाव व भाषामाधुर्य स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है. कर्ताने अपनी रचना के माध्यम से भव्य जीवों को ब्रह्मचर्यमय जीवन कैसे जीया जाय, ब्रह्मचर्य की रक्षा कैसे करें, ब्रह्मचर्यभंग के किन-किन कारणों से सुरक्षित रहें, आदि को उपदेश द्वारा समझाने का सफल प्रयास किया है. रचना का आधार उत्तराध्ययनसूत्र का अध्ययन- १६, दशब्रह्मचर्यसमाधिस्थान है. १० विध ब्रह्मचर्य समाधिस्थान वर्णन होने से उक्त शीर्षक की सार्थकता सिद्ध होती है. उत्तराध्ययनसूत्र के साथ-साथ ब्रह्मचर्यरक्षण संबंधी विवरण स्थानांग व समवायांगसूत्र में भी ९ गुप्तियों में वर्णित है. अब हम १० ब्रह्मचर्य समाधिस्थान का क्रमशः संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास करते हैं १. निर्ग्रथ को स्त्री, पशु अथवा नपुंसक का जहाँ निवासस्थान या संसर्ग हो वहाँ वास नहीं करना चाहिए. २. विकथा का ही अंश स्त्रीकथा है, अतः स्त्रीकथा न करें. ३. स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठें अथवा अकेली स्त्री के साथ वार्तालापादि कोई व्यवहार न करें. ४. स्त्रियों के मनोहर एवं मनोरम अंगों को दृष्टि जमाकर न देखें व न ही चिन्तन करें. For Private and Personal Use Only
SR No.525292
Book TitleShrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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