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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१४ नियंत्रित और व्यवस्थित जीवन न हो, इन्द्रियों पर विवेक का अनुशासन न हो, ज्ञानियों की भाषा में कहा गया है कि वह आत्मा मृत है। अंदर से मूर्छित आत्मा को मृत की संज्ञा दी गई है। यहाँ तो हमें अपने व्यवहार से अपनी धार्मिकता का परिचय देना है। हर इन्द्रिय पर हमारा अनुशासन होना बहुत जरूरी है। खा-पीकर के तो सारी दुनिया चली जाती है। ऐसा जीवन कोई मूल्य नहीं रखता है। इसीलिए मानवजीवन को परमात्मा को पाने का परम साधन कहा गया है। इसे मोक्ष का मंगल-द्वार माना गया है। न जाने पूर्व जन्मों में कितने पुण्य आपने किए होंगे, प्रयत्न पूर्वक कितनी धर्म-साधना आपने की होगी। उसके परिणामस्वरूप इस वर्तमान जीवन की प्राप्ति हुई है। चौरासी लाख जीवन योनियों की मान्यता है वैदिक और जैन दर्शन की परम्परा में। दोनों ही दर्शन इसे स्वीकार करते हैं। __कितनी ही योनियों में हमारा परिभ्रमण हुआ। न जाने कहाँ-कहाँ भटक कर हम यहाँ आये हैं। इसलिए यदि जरा भी प्रमाद किया, तो वे ही योनियाँ फिर-से आपके स्वागत के लिए तैयार हैं; फिर-से यह परिभ्रमण का चक्र चलेगा। परिग्रह की वासना को लेकर, जगत् को प्राप्त करने की कामना को लेकर; पूरे संसार का परिभ्रमण चलता है और संसार जीवित रहता है। हम बार-बार मरते हैं परन्तु यह हमारा संसार जीवित रहता है, जिन्दा बना रहता है। यह कभी मरता नहीं। होना यह चाहिये कि हमारे अन्दर से संसार मर जाये। मन के अन्दर से संसार के विषय मूर्छित हो जायें और मैं पूर्ण जागृत रहूँ। अपने पूर्णतम को प्राप्त करूँ। ___ इस ग्रन्थकार ने अन्तर की करुणा से इस सूत्र की रचना की है। जगत का मुख्य कारण वैर, कटुता और वैमनस्य है। इसका जन्म इससे ही होता है। बोलने में विवेक का अभाव हो सकता है क्योंकि भाषा पर आपका कोई नियन्त्रण नहीं है। जिसे हमारे यहाँ समिति माना गया। समिति का मतलब ही होता है उपयोग, यत्न । कार्य और उस कार्य के विवेक को यहाँ समिति माना गया, भाषा समिति । क्रियाओं के अन्दर, पौषध प्रतिक्रमण के अन्दर हम इसका उपयोग करते हैं कि विवेक पूर्वक और मर्यादित रूप में बोलूंगा। जरूरत पड़ने पर ही मैं इसका उपयोग करूँगा। समिति का मतलब होता है सारा ही जीवन-व्यवहार। इसे आधार माना गया है। इस आधार पर यदि आपका नियन्त्रण न रहे तो यह धर्म की इमारत कैसे और कब तक टिकेगी? यह आप स्वयं सोचिये! यदिजीवन में व्यक्ति ने उद्देश्यमूलक कुछ नहीं किया। खा-पीकर, मौज करके, जीवन व्यतीत कर दिया। सभी विषयों के आधीन रहते हुए दुर्दशा पूर्वक अपनी मृत्यु को प्राप्त हो गया, तो ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो जाये तो अन्तिम संस्कार करवाने के For Private and Personal Use Only
SR No.525292
Book TitleShrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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