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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 14 अगस्त-२०१४ अथवा नारि जिहां एकली, तेहनी संगति न हुवइ भली । धर्मकथा पुण तास म भाखि, बीजी वाडि इम निश्चल राखि" ॥२४॥ लीजी वाडि हिव चित्ति विचारि, नारि सरिस" व(ब)इसिवउ निवारी । इक आसणि तिहां दीपइ काम, चउथा व्रतनउं भाजई ठांम ॥२५॥ इम बइसतां हुइ अति आसंग, आसंगइ फरसाइं अंग"। अंगफरस वसि विषय विकार", जोवउ श्रीसंभू" अणगार ॥२६॥ इणि" कारणइं नियाणउं कर्यो, बारम चक्रवर्ती अवतर्यो । चित्रइं ते प्रतिबोध्यउ घणउं, लेश न आयो विरति हि तणउं ॥२७॥ इसउ जाणि इक आसण वारि, जननि(नी) बहिन जइ पुण हुइ नारि(री) । तेह जि व(ब)इसी ऊठइ जिहां, मुहुर्त एक न कल्पइ तिहां ॥२८॥ स्त्रीना इंद्रीय" अंग उपांग, मनहर निरखि माणि मनरंग । चित्रलिखित जउ हुइ पूतली, न जोइयई भाषइ केवली" ॥२९॥ दशवी(वै)कालिक प्रवचनमांहि, एह वचन जाणी आराहि । छेदइ“ चक्षु कुशील कहाइ, लख भव रूलियउ रूपी राय ॥३०॥ चउथी वाडि जाणि इम" पालि, हिवइं पंचमी हियइं संभालि । परियच भीति तणई आंतरइ, निशि निवास नारी जिह करइ ॥३१॥ सुरत केलि रस विहंगति नादि, कुंजई गायइ मधुरइ सादि । रोवइ दाधी दुह दवजाल, विलवइ विरह कराली बाल ॥३२॥ बात करइ मुखि हडहड हसइ, जेणय विषयराग उल्हसइ । शी(सी)ता हासइ अनरथ जोइ, रावणवध जाणइ सहु कोइ ॥३३॥ ब्रह्मचारि ए नहु सांभलइ, चित्त चलइ मति धी(ध)रम टलइ । वसई नही थानिक एहवइ, छटुउ ठाणउं सांभलि हवइ ॥३४॥ ॥ढाल ॥सासनादेवीय पाय पणमेवीय ए ढाल॥ पामिय योवन जुवइ संजोग, ऋद्धि सामग्रिय सवि लही ए । पंच इंद्रिय वसई भोगव्या भोग, पहिलना चित्ति चिंतइ नही ए । चिंतव्या दुर्गतिदायक एह स(शोल्य, विस विसहरइ मनही ए। तेहथी अधिक एम करि संदेह, एहवी वात आगमि कही ए ॥३५॥ श्रेष्टि माकंदिय पुत्र जिणरक्खियउ, यक्षशिक्षा सह वीसरी ए। देविमुख सनमुख तेणि जइ निरखियउ, पुव्वसंगति मति चित धरी ए । 18. कामक्रीडा. For Private and Personal Use Only
SR No.525292
Book TitleShrutsagar 2014 08 Volume 01 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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