________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
13
AUGUST-2014
विकट डाली संगमि जे रमइजी, कुक्कड मूसग मोर | वीससिया ते वरांसियाजी", पामइ दुक्ख अघोर ॥१३॥
भवियण भावई...
प(पी)घलइ रमणी अगणी संगतइंजी, मानव मन जतु"कुंभ" । न चलइ गयंवर शृंडई चालव्याजी, विरला ते जगि थंभ ॥१४॥
भवियण भावई...
विकल विवेकइं पसुय ति बापडाजी", नीलज" करता केलि । ष(स)हचर देखी लखण महासतीजी, रुलिय घणउं मन मेलि ॥१५॥
भवियण भावई...
अतिचिंति चंचल कायर पंडगाजी", वरतइ तीजइ" वेदि । तजि तजि संगति मति रति तेहनीजी, म पडिसि भवदुह खेदि" ॥१६॥
भवियण भावई...
इम जाणी आणी मति मनइंजी', राखि प्रथम ए वाडि । राखे" भंजी भोला पइसतीजी", प्राणई प्रमदा धाडि ॥१७॥
भवियण भावई...
॥ ढाल चुपै (चौपाइ)॥ हवइ कहीइ छइ बीजउ ठाण", रूप जाति कुल देश वखांण । रमणी तणी कथा जे कहइ, तेहनउ ब्रह्मव्रत किम रहइ ॥१८॥ वेणि भुयंगम गतिइं मराल', नयणि हरिण हरिलंक विशाल । वदन चंद्र वसु कुंभ सरोज", करयुग चरणइं जीति" सरोज ॥१९॥ इणि परि रमणि रूप वर्णवइ, मुगधलोकना मन भोलवइ । संभलि आणि विषय" मनरंगि, पासि पडइ जिम दीप पतंग ॥२०॥ अशुचि मूत्रमलनउ कोठिलउ', कूड कलह कज्जल कूपिलउ” । बारह श्रोत्र निरंतर वहइ, चर्म दीवडी ऊपम लहइ ॥२१॥ क्षणभंगुर औदारिक देह, सप्तधातुमय आमय गेह । चक्री चउथउ आणी हियइ, रूप अनित्यपणउं जोइयइ ॥२२॥ इत्थीकथा विकथामांहि गिणी, तीजइ अंगइ जिणरि भणी ।
सप्तम अंगइ अनरथ दंड, तिण कहता हुइ पाप प्रचंड ॥२३॥ 9. विश्वास करनार, 10. खोटो भरोसो, 11. लाख, 12. निर्लज्ज, 13. देह (?), 14. साप, 15. हंस, 16. सिंह जेवी पातळी कमर, 17.कुप्पी (शीशी)
For Private and Personal Use Only