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SHRUTSAGAR
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तिक्ख करवाल" स्युं कीध शतखंडित, जलहि जलि दह दिशि बलि कर्यउ ए । जोइ निपालित थयउ जइ पंडित, सेलगि वेगि हि ऊधर्यो ए ॥ ३६ ॥
सातमी वाडिनउ कहिउं सरूप, ब्रह्मआचार विचारीयई ए । कवल उपाडता झरइ घृतबिंदु, तेय आहार निवारीयइ ए । चक्रधर रसवती रसिक भूदेव, कामसरप सरि विडंबियउ ए । इम गिणी टालिवी सरस रससेव, रसनइंद्रिय बल जीपिवउ ए ॥३७॥
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पुरुषनइ कवल बलीस आहार, आठनई वीस नारी तणउं ए ।
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पंडक कवल चउवीस ए मान, अधिक आहार दूषण घणउ ए । ब्रह्मव्रतधारिनई ऊण गुण जाणि", जोय कंडरीक गयउ सातमी ए ॥ तुच्छ भोजन करी सूत्र हियडइ, धरी राखियइ वाडि इम आठमी ए ॥ ३८ ॥
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नवमीय परिहरइ अंग सिंगार, कामदीपन जिनवर भणई ए । कंकण मुंद्रडी कुंडल हार, न्हाण विलेपण "अविगिणइ " ए । थई सुमालिया अंग बाउसिया, दुसिया दोस ते साहुणी ए ।
बहुदूषण भूषण टालीयइ, पालीयइ आण जिणवर तणी ए ॥३९॥
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शद्दरसरूव ब (व) लि" गंधनइ फास, विषय पंच ए छंडियइ ए । इक इक मोकलइ जाणि जण "एकलइ, पंच ए वंचिय खंडियइ ए । मृगरस जस रूप पतंग, गंधि अलि फरसि गज गंजियइ ए । वाड नहुं भंजियइ दशम मनरंगि, दंसणि तासु जग रंजियइ ए ॥ ४० ॥ ॥ कलश ॥
इम बंभ तरु गिणि वाडिसम, जिणि दशय थानक सद्दह्या ! गुण तासु भाव्या सुदृढ राख्या, छिद्र पडता निग्रह्या । तेहि निर्मल मुक्तिमय फल, अचल थानकि वासिया । जय ब्रह्मचारी सुकृतधारी, पासचंदि नमंसिया ॥४१॥
AUGUST-2014
19. तलवार, 20 जीतवुं, 21. नपुंसक, 22. अवगणवु.
॥ इति ब्रह्मचर्य दशसमाधिस्थानक कुलकं समाप्तम् ॥
संवत् १६९२ वर्षे अश्वनिमासे शुक्लपक्षे प्रतिपदा तिथी ज्ञवासरे । लिपिकृतं मुनि श्री मल्लिदासतत्सिष्य मुनिमनोहरेण । पठनार्थं सुश्राविका बाई चंदा शुभं भवतु । मालपुरवरे ।
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