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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 67 जुलाई २०१४ आउखो । धनुषपृथक्त्व देहगान । उरपरसर्प ते कुण कहियै ? स्वाले उ सर्प प्रमुख । तिणांरो पूर्वकोडि उत्कृष्टो आउखो । हजार जोजन देहमान । भुजपरसर्प ते कुण? गोह, नउलीया, गिलोइ, वांभणी प्रमुख तिणांरो पूर्व कोड उत्कृष्टो आउखो । कोस प्र ( पृथक्त्व देहमान । इयां पांचारी च्यार लाख योनि । इयां तिर्यंचानें छेदन, भेदन, कदर्थन, अंगावयवकर्तन, नासाविधन, अतिभारारोपण, पृष्ट (ष्ठ) गालन, डांभदान, कर्कसप्रहारदांग, चारपांणीनिषेध, विस्मरण, तापन, पीडन, व्यथोत्पादनादिके करी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां ) ते मिच्छामि दुक्कर्ड ||१२|| हिवै मनुष्यना भेद कहै छै । त्रिण सय तिडोत्तर ३०३ । ते किम ? पेंतालीस लाख जोजन मनुष्य क्षेत्रमांहे पांच भरत (५) पांच एरवत (५) पांच महाविदेह ( ५ ) एपन कर्मभूमि | पांच हेगवत (५) पांच एरन्नवत ( ५ ) पांच हरिवर्ष (५) पांच रम्यक (५) पांच देवकुरु (५) पांच उत्तरकुरु (५) एस अकर्म्मभूमि | छप्पन अंतरद्वीप एक सो एक (१०१) गर्भज पर्याप्ता, एक सो एक (१०१) गर्भज अपर्याप्ता, एक सो एक (१०१ ) समूर्च्छिम ए सर्व भेला कीधां त्रिणसयतीन भेद (३०३) । ते केइ अनार्य, केइ ब्राह्मण, केइ क्षे(क्ष) त्रिय, केइ वैश्य, केइ शूद्र, केइ राजा, केइ रंक के दृष्ट, केइ अदृष्ट, केइ ज्ञात, केइ अज्ञात, केइ श्रुत, केइ अश्रुत, केइ स्वजन, केइ परजन, केइ शत्रु केइ मित्र, केइ प्रत्यक्ष, केइ परोक्ष, अनेक भेद । ते युगलीया मनुष्य छै तिणांरो तीन पल्योपमरो उत्कृष्टो आउखो । तीन कोस देहमान । बीजा मनुष्यारो पूर्वकोडि उत्कृष्टो आउखो। पांचसे धनुष देहमान । इयां मनुष्याने ताडन वर्जन, छेदन, भेदनादिकं करी पीडा करी हुदै अथवा अभिया बत्तिया इत्यादिक दश प्रकारे करी विरधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां ) ते मिच्छामि दुक्कडं ||१३|| अथ संयम विराधना मिथ्यादुः कृ (ष्कृतं । तत्र पञ्चमहाव्रतानि रात्रिभोजनविरमणसहितानि गृहीत्वा विराधितानि भवन्ति । कथम् ? तथाहि - सचित्त पृथवी, माटी, मुरड, खडी, खांणि, खुणी हुवै अथवा ए ऊपर पग आया हुवै। सचित्त लूण सेंधव खाधा हुवै अथवा उसामांहे घाल्या हुवै । वली सचित्त हरीयाल, हींगलू प्रमुख वांद्या हुवै। नगरगांहे पेसतां पग न पूंज्या हुवै। इत्यादिक प्रकार करी पृथवीकाय जीवांरी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां ) ते मिच्छामि दुक्कडं ||१|| सचिन पाणी अथवा मिश्र पाणी पीर्या हुवै। सचित्त पाणीसुं वस्त्रडील धोया हुवै। नदी वा (ना) हला लंघ्या हुवै। वरसतै मेहने चाल्या हुवै । धुंहरमाहे For Private and Personal Use Only
SR No.525291
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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