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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 65 जुलाई - २०१४ कीधी हुवे इणभव परभव जातां ते मिच्छामि दुक्कडं ||४|| हिवै वनस्पतिकायरा भेद कहै छै। ते वनस्पति विहुं भेद-प्रत्येक अने साधारण । ते प्रत्येकना अनेक भेद ते कुण कुण? आंबा, नींबू, कदंब, असोग, नाग, पुन्नाग, धव, खदिर, वड, पीपल, करीर, बोरटी, खेजडा. फोग, आक, धत्तूरा, केला, खडतृण, हरीवेलि, पान, फूल. वीज, छाल, कमल प्रमुखा। प्रत्येक वनस्पतिरै मूलमाहे असंख्याता जीव ।।१।। कंदमाहे असंख्याता जीव । २|| संधमांहे असंख्याता जीव ।।३।। छालमांहे असंख्याता जीव ।।४।। शाखमांहे असंख्याता जीव ।।५।। पडिशाखामांहे असंख्याता जीव ।।६।। पानमांहे एक जीव ।।७।। फूलमांहे अनेक जीव ।।८।। फलमांई जितरा बीज तितरा जीव ।।९।। सिंघोडा बि जीव । तेह हजार जोजन झाझेरा पद्मद्रहादिकमें कमल छै तेहनो देहमान दस हजार वरसनो उत्कृष्टो आउखो । दश लाख योनि । प्रत्येक वनस्पतिनी अरंभादिकें करी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छामि दुक्कडं ।।५।। हिवै साधारण वनस्पति अनंतकाय। तेहना अनेक भेद। कंदमूल, अंकुर, किरालय, सेवाल, भूफोड, पांचवरणी फूगण, गाजर, पंचांग, मूला. सूरण, लसण, तेज, आदो, थोहर, कुवारपाठो, गुग्गल, गिलोय, गोथ, लीली, हलदर, रत्तालू. पिंडालू प्रमुखएह वनस्पतिमाहे राइरा अग्रभागमांहे अनंताजीव जघन्य अने उत्कृष्ट पिण अंतर्मुहुनो आउखो, चवदै लाख जीवयोनि । एह साधारण वनस्पतिनी आरंभादिके करी विराधना करी हुदै इणभव परभव जाता(जाणतां अजाणतां) से मिच्छागि दुक्कडं । ६। हिवै बेइंद्री जीव कहै छ। जेहने रपर्शन अने जीभ ए बे इंद्री ते संख, कवडा, गंडोला, जलोक, अलसीया, लद्द, कृमिया, पुरागाडर, घडेल, तंबोलिया, वाला, काष्टकीट, चंदणग जीवविशेष प्रमुख अनेक भेद। बार जोजन संख प्रमुखरो देहमान, बारै वरस उत्कृष्ट आउखो, दोय लाख योनि । बेइंद्री जीवनी आरंभादिकें करी विराधना कीधी इणभव परभव जाता(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छामि दुक्कडं ।७।। हिवै तेइंद्री जीव कहै छ। जे जीवनें स्पर्शन, रसन, घ्राण ए तीन इंद्री ते तेंद्री। कुण? कानशिलायो, माकण, जूं, लीख, कीडी, मक्कोडा, उदेही, घीवेल, ईली, चर्मजू, गोंगीडा, जात, गदहीया, चोरकीडा, गोबरता कीडा, धानरा कीडा, कुंथुवा, गोपालिका, चिंचड, ईलका, ममोला, जलौक प्रमुख । तेइंद्रीनो उगणपचास दिनरो उत्कृष्टो आउखो, त्रिण कोस काफानसलाया प्रमुखो देहमान, दोय लाख For Private and Personal Use Only
SR No.525291
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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