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SHRUTSAGAR
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JULY - 2014 प्ररूप्यो हिंसारूप अधर्म ते धर्मबुद्ध मान्यौ हुवै १८ एवं अढारै पापस्थान यतीपणमै अथवा ग्रहस्थपणामै सेव्या हुवै ते इणभव परभव जाणतां अजाणतां मिच्छामि दुक्कडं ।।२।।
हिवै चौरासी लाख जीवाजोनि कहै छै। ते खामज्यौ । सात लाख पृथवीकाय तेहना ए भेद-स्फटिक, मणि, रत्न,प्रवालि, हिंगुल, हरिताल, मणिसाल, पारो, सुरमौ, सोनो, रूपौ, तांबो, लोह, कथीर, जसद, सीसो, साते धात, गेरु, खडीवांनी, अरणेटो, पलेवा, अभ्रक, तुरी, वस्त्र रंगणरी माटी, ऊखरखेत्ररी माटी, पाषाण, खर पृथवी प्रमुख भेद । एह पृथवीनो खर प्रमुखनो बावीस हजार वरस उत्कृष्टो आउखो, आंगुलरो असंख्यातमो भाग देहमान, शणिना फूल जे पृथवीना खंडमाहे जे जीव छै ते जीव पारेवा जेहवी जे काया करे तो जंबूद्वीपमाहै समावै नहीं। ते पृथवीकाय रूपैं रसैं गं, फरसें करी सातलाख जोनि जाणवी। ते पृथवीकायना जीवाने जाणतां अजाणतां आरंभादिकै करी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जाता(जाणता अजाणतां) ते मिच्छामि दुक्कडं ।।१।।
हिवै अप्काय कहै छै। ते अप्कायना अनेक भेद । ते किग? आकासनो पाणी, धरतींनो पाणी, ओस, हिम, करहा. त्रेह, धुंहर, घनोदधि प्रमुख। एह अप्कायनो सात हजार वरसरो उत्कृष्टो आउखो, आंगुलरे असंख्यातमे भाग देहमान। एक पाणीरा बिंदु में असंख्य ता जीव सरसुं जेहवी काया करै तो जंबूद्वीप माहैं भावै नहीं। ते अप्काय जीवनी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जाता(जाणता अजाणतां) ते मिच्छामि दुक्कडं ।।२।।
हिवै अग्निकायरा भेद कहै छै । अग्नि, अंगारा, मुग्मुर, झाल, भोभर, अंगीठी, कोडु, दीवी, चराक रोहि में अग्नि लगावै चकमक, विजली प्रमुख । एह अग्निकाय चिणोठी जित्नी मांहे असंख्याता जीव ते खस-खस जेवडी काया करै तो जंबूद्वीपमाहे नहीं मावै। इणारी सात लाख योनि, तीन अहोरात्र उत्कृष्ट आउखो। अग्निकाय आरंभादिकै करी विराधना कीधी हुवै इभव परभव जातां ते मिच्छामि दुक्कडं ।।३।।
हिवै वायुकायरा भेद कहै छै । ते कुण कुण? गुंजपात, उद्भ्रामकवात, उत्कालिकावात, मंडलवात, महावात, शुद्धवात, भूतेलियो, वातोलियो, कोरण, वाउलि, धनुवात, तनुवात प्रमुख । वायुकायनो तीन हजार वरसरो उत्कृष्टो आउखो, अंगुल प्रमाण आकास भागवर्तिमांहे असंख्याता जीव ते लीख सरीखी काया करै तो जंबूद्वीपमाहे न मावै। सात लाख जोनि । ते वायुकाय आंरभादिकें करी विराधना
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