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दूसरे का दर्द देखकर के आपकी आँख में आँसू आना चाहिए। दूसरों की पीड़ा का आपको अनुभव होना चाहिए ।
मई २०१४
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इस आत्मा की क्या दशा है। इस दुखी आत्मा को दुख से कैसे मुक्त करूँ ? तब जाकर के साधना से सुगन्ध पैदा होती है। यही है महावीर का सम्पूर्ण दर्शन ।
जीवन की शुद्धि के लिए पहले आप सहन करना सीखें। उसमें भी सर्वप्रथम शब्द की चोट को सहन करना सीखें क्योंकि कटुता वहीं से पैदा होती है। संघर्ष वहीं से पैदा होगा। इसने ऐसा कह दिया, उसने वैसा कह दिया ।
एक महान पहुँचे हुए सन्त थे । ऋषि थे । ध्यानस्थ बैठे थे। कोई उनका परम भक्त था। बड़ी सुन्दर वस्तु लाकर अर्पण कर गया। सामने एक व्यक्ति ने जब यह नजारा देखा, मन में विचार आया कि यह कैसा सन्त है, कैसा साधु है ? कहीं कमाने जाता नहीं, खाता, पीता मजा करता है । मन में ईर्ष्या पैदा हुई। इसके भक्त वर्ग कैसे हैं? बड़ी मूल्यवान चीज लाकर सामने रख गए । झाँक कर देखता भी नहीं । बेवकूफ है। जवान व्यक्ति था, सामने आकर के नहीं बोलने जैसा बोल गया। कायर आदमी है, घर से भाग कर आ गया। बाल-बच्चों का पालन-पोषण करने की ताकत नहीं इसलिए बाबा बन गया। मुफ्त का खाना मिलता है। नहीं बोलने जैसे कटु शब्द वह बोल गया ।
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महात्मा के चेहरे पर कोई वेदना का चिन्ह नहीं। अपनी प्रसन्नता में मग्न साधना का नशा ऐसा है जो कभी उतरता ही नहीं। आप रात को शराब पीयेंगे तो उसका खुमार सुबह उतर जाएगा। परन्तु इस साधना का खुमार ऐसा है, एक बार इसे अपना लिया तो जिन्दगी में उतरे ही नहीं। संसार का दर्द या दर्द का अनुभव भी नहीं होने देता। आनंद का ही अनुभव होगा। कोई दर्द नहीं होगा । इस नशे में यह मजा है।
साधु अपनी साधना में मस्त थे। जगत से शून्य थे, क्या हो रहा है कुछ मालूम ही नहीं । परन्तु हम अपनी साधना में तो, हम सब ध्यान रखते हैं । माला मिनते समय घर की पूरी चौकीदारी रहती है। भगवान का भजन चलता हो, लक्ष्मीनारायण के मन्दिर में गए हो, जूता बाहर खोल करके आए, मन जूते में रहा। शरीर भगवान के पास ले गए, ऊपर से प्रार्थमा कर रहे हैं ।
(क्रमशः )