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स्वाध्याय तप : एक परिचय
कनुभाई एल. शाह
सारा साहित्यना स्वाध्यायनुं जीवनमां प्राचीन काळथी महत्त्व अंकायुं छे. उपनिषद काळमां ज्यारे विद्यार्थी आश्रममाथी पोतानुं शिक्षण पूरुं करीने विदाय ले त्यारे तेने गुरु तरफथी केटलीक शिक्षाओ / शिखामणो आपवामां आवती हती. तेमांनी एक महत्त्वनी शिखामण छे स्वाध्याय 'स्वाध्याय मा प्रमदः' एटले के स्वाध्ययमां प्रमाद करवो नहि. स्वाध्याय एक एवी किंमती वस्तु छे के गुरुनी राजमां पण गुरुनुं कार्य करे छे.
शरीर माटे पौष्टिक खोराक जेटलो जरूरी छे एटलो ज आत्मा माटे स्वाध्यायरूपी खोराक जरूरी छे. स्वाध्याय द्वारा मानवी एक नवी ऊर्जा प्राप्त करे छे. स्वाध्यायनी गेरहाजरीमां मनुष्यनुं मगज जडवत् बने छे, चिंतन शक्ति नाश पामे छे. मानवी पोताना जीवन दरमियान अनेक प्रवृत्तिओ करे छे तेमां आत्मा माटे स्वाध्यायरूपी प्रवृत्तिथी मानवी सुसंस्कृत बने छे, चिंतनशील बने छे, पोताना सुख / दुःखनी साथे अन्यनां सुख दुःखनो पण विचार करतो थाय छे.
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स्वाध्यायथी प्राप्त थतो आनंद संसारमाथी प्राप्त थता आनंदोमां सौथी चढियातो छे, श्रेष्ठ छे. स्वाध्याय द्वारा जीवनमां आत्मबोध, आत्मज्ञान अथवा कही शकाय के जीवन सुखमय बनाववानो जीवनमंत्र मळे छे. संसारना सुख दुःखो करतां आत्माना सुख प्रदेशना विचारमंत्रनी प्राप्ति सहज बने छे. आ प्रकारनुं मळतुं शिक्षण क्यांयथी पण मळी शके एम नथी.
स्वाध्यायनुं महत्त्व जैन परम्परामां सविशेष छे. स्वाध्यायनो सरळ अर्थ थाय छे, स्व + अध्ययन, पोतानुं अध्ययन. 'स्वाध्याय' शब्दनी संधि छूटी पाडीए तो - स्व + अधि + आय पण थाय छे एटले के पोताना द्वारा पोताना आत्मानुं अध्ययन अथवा आत्मबोध. स्वाध्याय शब्दमां सु + आ + अध्याय एम त्रण शब्दो छे. सु सारी रीते, आ = मर्यादा, काळवेळानो त्याग करीने, अध्याय = भणवुं ते स्वाध्याय. तपना प्रकारो तपना प्रकारो जाणतां पहेलां तप कोने कहेवाय अने ते करवानो हेतु स्पष्टपणे जाणी लेवानी जरूर छे. महर्षिओए तपनी व्याख्या घणी व्यापक रीते करी छे -
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