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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - श्रुतसागर ३८-३९ ३९ २००० ई.पू. के भी पाए गए हैं, जिनमें मात्राएँ स्पष्ट हैं और अशोकन लिपि के सदृश हैं, परन्तु बोधगम्य न होने के कारण इनसे अभी तक कोई महत्त्वपूर्ण परिणाम नहीं निकल सका है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्राह्मी लिपि का उद्भव संबन्धी अवधारणा : ब्राह्मी लिप के उद्भव की जब चर्चा करते हैं तो हमें प्रमुखरूप से दो विचारधाराएँ दिखाई पडती हैं- (१) वैदिक और (२) जैन । (१) वैदिक परंपरानुसार इस लिपि के सर्जक परम पिता परमेश्वर देवादिदेव ब्रह्मा जी हैं। जिन्होंने सृष्टि रचना के समय इस लिपि की रचना की । और उनके नाम पर ही इस लिपि का ब्राह्मी नाम पडा । एक मान्यता ऐसी भी है कि प्राचीनकाल में लिखने-पढ़ने का काम ब्राह्मण करते थे, अतः ब्राह्मण शब्द पर से इस लिपि का नाम ब्राह्मी पडा हो ऐसी संभावना है। (२) जैन परंपरा के अनुसार प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेवजी की दो पुत्रीयाँ थीं- ब्राह्मी और सुन्दरी । ऋषभदेवजी ने ही असि - मषि - कृषि का सिद्धान्त दिया। जिसके तहत अपनी बड़ी बेटी ब्राह्मी को यह लिपि सिखाई । अतः इस लिपि का नाम ब्राह्मी पडा । अस्तु यह गंभीर चिन्तन और शोध का विषय है जो आज तक गवेशकों के लिए एक पहेली बना हुआ है। ब्राह्मी लिपि की विशेषताएँ : : ब्राह्मी लिपि हिन्दुस्तान की सबसे प्राचीन लिपि है । • अधिकांश लिपियाँ इसी लिपि से उद्भूत हुई हैं । अतः ब्राह्मी को समस्त लिपियों की जननी कहा जाता है। इस लिपि का ज्ञान हिन्दुस्तान में प्रचलित अन्य प्राचीन लिपियों को सरलता पूर्वक सीखने - पढने एवं ऐतिहासिक तथ्यों को समझने में अतीव सहायक सिद्ध होता है। * यह लिपि अपने समय की सर्वमान्य लिपि होने के कारण इसे राजाश्रय प्राप्त था ! • वैदिक-जैन-बौद्ध आदि धर्मग्रन्थों की रचना सर्व प्रथम इसी लिपि में हुई और इसे अन्य लिपियों की तुलना में अग्रक्रम में रखा गया । * यह लिपि शिलापट्टों अथवा ताम्रपत्र- लोहपत्र आदि पर नुकीली कील द्वारा For Private and Personal Use Only
SR No.525288
Book TitleShrutsagar Ank 038 039
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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