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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्राह्मी लिपि : एक अध्ययन डॉ. उत्तमसिंह ब्राह्मी लिपि भारतवर्ष की सबसे प्राचीनतम लिपि है जो पूर्णतः पढी जा सकी है। हिन्दुस्तान की अधिकांश लिपियों की जननी यह लिपि हमें सर्वप्रथम मौर्यकालीन अभिलेखों में बायें से दायें लिखी हुई देखने को मिलती है। ये अभिलेख पहाड़ियों की चट्टानों, शिलास्तम्भों और शिलाफलकों पर उत्कीर्ण हैं। हिन्दुस्तान में पूरव से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक इस लिप में लिखे हुए लेख आज भी विद्यमान हैं, जो इसकी सर्वदेश व्यापकता के परिचायक हैं। जबसे इस लिपि का उद्वाचन हुआ है, यह सिद्ध हो गया की भारतीय उपमहाद्वीप सहित दक्षिण-पूर्व एशिया, श्रीलंका तथा तिब्बत आदि देशों की लिपियाँ भी देवानां प्रिय, जनानां प्रिय, प्रियदर्शी, सम्राट अशोक के शिलालेखों में प्रयुक्त ब्राह्मी लिपि से ही उद्भूत हुई हैं। हालाँकि अशोक के लेखों में कहीं भी इस लिपि का ब्राह्मी के रूप में नामोल्लेख नहीं हुआ है लेकिन जार्ज ब्यूलर, डॉ. राजवली पाण्डेय आदि प्रसिद्ध पुरातत्वविदों का मानना है कि इस लिपि को ब्राह्मी नाम दिया जा सकता है क्योंकि अधिकांश भारतीय साहित्य में उद्धृत लिपियों की सूचि में ब्राह्मी को ही प्रथम स्थान दिया गया है। समय के साथ-साथ इस लिपि में काफी परिवर्तन भी हुए। एक समय ऐसा भी आया जब इस लिपि को पढने-लिखने वाले ही नहीं रहे और यह सिर्फ शिलाओं, ताम्रपत्रों, लोहस्तम्भों, मृद्पात्रों अथवा सिक्कों पर ही लिखी रह गई। बड़े से बड़े विद्वान भी ७वीं-८वीं शताब्दी तक की लिपियाँ ही पढ़ पाते थे। लेकिन इससे पूर्व-काल की लिपि को पढ-पाना उनके लिए असंभव था। कहा जाता है कि ई.सन् १३५६ में फिरोजशाह तुगलक ने जब मेरठ और दिल्ली-टोपरा के अशोक स्तंभों को दिल्ली मँगवाकर उन्हें पढने के लिए विद्वानों की सभा में रखवाया तो कोई भी विद्वान उन्हें पढ़ नहीं पाया। मुगल सम्राट अकबर को भी इन लेखों का अर्थ जानने की जिज्ञासा थी। वह इन लेखों में उत्कीर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विषयक गूढ रहस्य को जानना चाहता था, परन्तु उसे भी ऐसा कोई विद्वान नहीं मिला जो उन लेखों को पढकर अर्थ समझा सके। ई.सन् १७८४ में जब ‘एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल' की स्थापना हुई तब भारतीय प्राचीन इतिहास, शिल्प एवं लिपि-विज्ञान में रुचि रखनेवाले विद्वानों For Private and Personal Use Only
SR No.525288
Book TitleShrutsagar Ank 038 039
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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