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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ बार अध्याय प्रमाण मलयगिरिशब्दानुशासन व्याकरण संपूर्ण बने. संघवीना पाडानी खंडित ताडपत्रीय प्रतिना लगभग ४००मा पानामां इति श्रीमलयगिरिविरचिते शब्दानुशासने तद्धिते दशमः पादः समाप्तः ए प्रमाणे आव्युं छे एटले ते पछीनां पानामां बीजां आठ पाद होवा माटे जराय शंकाने स्थान नथी. अने ए मुजब आचार्य श्रीमलयगिरिकृत शब्दानुशासन बार अध्याय अने अडतालीस पादमां समाप्त थवा विषे पण शंका जेवुं कशुं ज नथी. मार्च-अप्रैल २०१४ - आ. श्रीमलयगिरिए पोताना शब्दानुशासन साथे संबंध धरावता स्वतंत्र धातुपाठ, उणादिगण आदिनी रचना करी होय तेम जणातुं नथी. एमना शब्दानुशासनना अभ्यासीओने ए माटे तो अन्य आचार्यकृत धातुपाठ आदि तरफ ज नजर करवी पडे तेवुं छे. श्रीमलयगिरिसूरिना शब्दानुशासननो पठन-पाठन माटे खास उपयोग थयो होय तेवुं देखातुं नथी. ए ज कारण छे के एनी नकलो सिद्धहेमव्याकरणनी माफक विपुल प्रमाणमां प्राप्त थती नथी. आम छतां आचार्य श्रीक्षेमकीर्त्तिए बृहत्कल्पसूत्रनी टीकाना अनुसंधाननी उत्थानिकामां शब्दानुशासनादिविश्वविद्यामयज्योतिः पुञ्जपरमाणुघटितमूर्तिभिः श्रीमलयगिरिमुनीन्द्रर्षिपादैर्विवरणकरणमुपचक्रमे आ प्रमाणे श्रीमलयगिरिना शब्दानुशासननी खास नोंध लीधी छे. ए उपरथी एमना व्याकरणनो विद्वानोमां अमुक प्रकारनो विशिष्ट प्रभाव तो जरूर ज हतो एमां जराय शक नथी. प्रस्तुत् व्याकरणग्रंथ अपूर्ण होई एना अंतनी प्रशस्तिमां श्रीमलयगिरिए कई कई खास वस्तुनी नोध करी हशे ए कही शकाय एम नथी. तेम छतां एनी शरूआतमां आवता एवं कृतमङ्गलविधानः परिपूर्णमल्पग्रन्थं लघूपाय आचार्यो मलयगिरिः शब्दानुशासनमारभते आ उल्लेखमां तेमणे पोताने आचार्य तरीके ओळखाव्या छे ए वस्तु तद्दन ज नवी छे के जे, तेमना बीजा कोइ ग्रंथमाय नोधाल नथी. For Private and Personal Use Only आचार्य श्रीमलयगिरिसूरिवरना शब्दानुशासनने लगती आटली संक्षिप्त नोंध लखी आ लेखने अहीं ज समाप्त करवामां आवे छे. आ. श्रीमलयगिरिना जीवननो संक्षिप्त छतां अतिविशिष्ट परिचय मेळववा इच्छनारने श्रीजैन आत्मानंद सभाभावनगर तरफथी प्रसिद्ध थयेल सटीको शतक-सप्ततिकाख्यौ पञ्चम-षष्ठौ कर्मग्रन्थौनी मारी लखेली गुजराती प्रस्तावना जोवा भलामण छे. ( जैन सत्य प्रकाश, वर्ष - ७, अंक नं. १,२,३ ) १. नामनां नव पादमां षड्लिंग, स्त्रीप्रत्यय, कारक अने समासप्रकरणनो समावेश करवामां आव्यो छे.
SR No.525288
Book TitleShrutsagar Ank 038 039
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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