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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६ मार्च-अप्रैल २०१४ राजस्थान की धरा उदयपुर से थोडी दूरी पर स्थित सुप्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र श्री केशरियाजी ऋषभदेव तीर्थ से भला कौन अज्ञात होगा ? इस तीर्थ का इतिहास ११ लाख वर्ष पूर्व का बड़ा ही रोमांचक और अद्भुत है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के शासनकाल में दशरथनंदन राम और लक्ष्मण ने लंकापति राक्षसराज रावण का वध किया था। महासती सीता को लेकर वे अयोध्या की ओर लौट रहे थे, तब सीताजी ने रामचंद्र से कहा कि - 'अशोकवाटिका में मैंने जो पवित्र सरोवर की मिट्टी से तीर्थंकर देवाधिदेव श्री ऋषभदेव की नयनरम्य प्रतिमाजी बनाई है उसे प्रथम पुष्पक विमान में ले चलें । इसी प्रतिभाजी के पूजन से मेरी शील रक्षा हुई है और रावण से मुक्ति मिली है।' उन्होंने अत्यंत बहुमानपूर्वक उस प्रतिमाजी को उठाकर पुष्पक विमान में विराजमान किया । मालवदेश के प्राकृतिक सौंदर्य से मोहित होकर रामचन्द्रजी ने इस प्रतिमाजी को क्षिप्रा नदी के तट पर जहाँ उज्जयिनी नगरी बसी हुई है वहाँ स्थापित किया। राम, लक्ष्मण, सीता एवं विद्याधरों ने प्रतिमाजी की अष्टप्रकारी पूजा की। सीताजी ने उस प्रतीमाजी को उठाकर अयोध्या ले जाना चाहा परंतु अधिष्ठायकदेव की अनुमति न होने से श्रीरामजी ने उज्जयिनी के महाराजाओं को यह प्रतिमा सौंप दी। महाराजा ने अपने इष्टदेव समझकर गगनचुम्बी जिनालय का निर्माण करवाकर प्रतिमाजी की महोत्सवपूर्वक प्रतिष्ठा करवाई । उसके बाद यह प्रतिमाजी उज्जयिनी के श्रावक-श्राविकाओं की श्रद्धा का केन्द्रबिंदु बन गई । श्रीपाल और मयणा ने इस प्रतिमाजी का पूजन किया था । भूपाल श्रीपाल राजा का कुष्ठ रोग निवारण हुआ। इस घटना से श्री ऋषभदेव प्रभु की महिमा प्रतिदिन बढ़ती गई। अधिष्ठायकदेव प्रभु के दरबार में आनेवाले लोगो की मनोकामना पूर्ण करते हैं। अत एव लोगों ने श्रद्धा और भक्ति से धीरे-धीरे केशर चढ़ाना शुरू किया। केशर की मात्रा इतनी बढ़ गई कि प्रभु का नाम एक विशेषण रूप से ख्यात हुआ । अब भगवान ऋषभदेव को जनता 'केशरियाजी' या 'केशरियानाथ' कहने लगी । श्रीपाल - मयणा ने नवपद की आराधना की और महारोग से मुक्ति पाई. इस लिए यह जिनालय श्री सिद्धचक्राराधन केशरियानाथ महातीर्थ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । भौगोलिक परिस्थितियों से बचने के लिए अधिष्ठायक देवों द्वारा प्रतिमाजी मेवाड के बड़ोद गाँव में प्रतिष्ठित हुई । कालक्रमानुसार बडोद से यह प्रतिमा For Private and Personal Use Only
SR No.525288
Book TitleShrutsagar Ank 038 039
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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