SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ जनवरी - २०१४ (१४) इस चित्र में इन्द्र भगवान को गोद में लिये पांडुक वन में बैठे हैं। कतिपय देवता कलश भरने को जा रहे हैं, कतिपय भर कर आ रहे हैं एवं कितनेक तैयार खड़े हैं। ऊपर का भाव बताने में चित्रकार बहुत कुछ सफल हुए हैं। "सुरगिरि परजी... सवे सुर कर जोडीने" तक का भाव बताया है। (१५) देव देवियाँ क्षीरसागर से भगवान के अभिषेक के लिये नलकलश भर ले जा रहे हैं। दोनों तरफ क्षीरसागर का दृश्य सुन्दर रीति से बताया है। इन्द्र की चारों ओर छत्र चामर इत्यादि उपकरण पड़े दिखाये हैं "आत्म साधन रसी... आगमे भासिया तेम आणी ठवे" का भाव बताया है। (१६) एक ओर इन्द्र भगवान को गोद में लिये बैठे हैं और दाहिनी ओर एक देव छत्र लिये खडा है। कतिपय देव देवियाँ जलकलश भर छत्र चामर सिंहासनादि तैयार लिये खडे हैं। "तीर्थजल भरिय कर कलश करी देवता... शक्र उत्संग जिन देखी मन गहगही" उक्त दो गाथाओं का भाव बताया है। (१७) इस चित्र में इन्द्र-इन्द्राणियाँ जलकलश भर बहुत शीघ्र पर्वत की ओर जा रहे हैं "हंहो देवा दंदो देवा... कालादि ठव्वो" तक का भाव बताया गया है। (१८) प्रस्तुत चित्र के बीच में इन्द्र भगवान को गोदी में लिये बैठा है और क्रमशः देवसमूह कलश द्वारा भगवान को अभिषिक्त करते हैं। आठवीं ढाल की एक गाथा का एक भाव बताया गया है। (१९) इस चित्र में सब देवदेवियाँ भगवान का अभिषेक कर रहे हैं। (२०) प्रस्तुत चित्र में दाहिनी ओर इन्द्र स्वयं वृषभ का रूप कर भगवान का अभिषेक कर रहा है। बाईं ओर दूसरा रूप कर विलेपनादि का भाव बतलाया गया है। शेष इन्द्र पास खड़े हैं। चित्र बडा मार्मिक है। ''सोहम सुरपति.... भामसुं हवे भय फंद" का भाव बताया है। (२१) मेरुपर्वत पर से भगवान को अभिषेक कराकर इन्द्र वापिस माता के पास ले जा रहा है। निम्न भाग में माता के पास स्थापित करने का भाव एवं एक ओर ३२ कोटि सोनैया निछरावल का भाव बहुत सुन्दर रीति से चित्रित किया है "कोड बत्तीस सोवन्न वारी... तुम सुत अम आधार" तक का भाव बताया गया है। (२२) तत्पश्चात् देवता नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव करते हैं। यह भाव बहुत सुन्दर रूपसे बताया है। (२३) भगवान श्री ऋषभदेवजी का चित्र इन्द्रद्वययुक्त सुन्दर रीति से चित्र किया है। "एम पूजा भगते करो" इस ढाल का भाव बताया है। For Private and Personal Use Only
SR No.525286
Book TitleShrutsagar Ank 2014 01 036
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy