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दिसम्बर • २०१३ १. सारस्वतमंडन-आ सारस्वत व्याकरण परनो ग्रंथ छे.
(पाटण वाडीपार्श्वनाथ भं.) २-३. काव्यमंडन, चंपूमंडन-ते बन्नेने सारस्वतमंडनना अनुज कहेल छे. ४. कादंबरीमंडन-अनुष्टुप् ४ परिच्छेदमां छे. ५. चंद्रविजय-१४१ ललित पद्यमां बे पटलमां छे. ६. अलंकारमंडन-पांच परिच्छेदमां छे. ७. शृंगारमंडन-जेमां शृंगारिक परचूरण श्लोक छे. ८. संगीतमंडन अने ९ उपसर्गमंडन.
आ बधा ग्रंथो मंडने पोते ज लख्या होय तेम सं. १५०४मां कायस्थ विनायकदासना हाथनी ताडपत्रीय प्रतो जे पाटण वाडीपार्श्वनाथना मंदिरना भंडारमा विद्यमान छे ते उपरथी प्रतीत थाय छे. ते पैकी १, ८ अने ९ सिवायना सर्व हे. ग्रं. मां मुद्रित थया छे. दशमी कृति नामे कविकल्पद्रुमस्कंध छे.
मांडनने चार पुत्रो हता. आ भाइओए श्रीजिनभद्रसूरिना उपदेशथी एक विशाल सिद्धांतकोष लखाव्यो हतो. आजे ते सिद्धांतकोष विद्यमान नथी. पाटणनो एक भंडार के जे सागरगच्छना उपाश्रयमा रक्षित छे, तेमां भगवती सूत्र (मूळ) नी एक प्रति छे. जे मंडनना सिद्धांतकोशनी छे. तेमां जणाव्यु छ के
सं. १५०३ वैशाख शुदि १ प्रतिपत्तिों रविदिने अद्येह श्रीस्तम्भतीर्थे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे स्रीजिनभद्रसूरीश्वरणामुपदेशेन श्रीश्रीमालज्ञातीय सं. मांडण. सं. धनराज भगवतीसूत्रपुस्तकं निजपुण्यार्थं लिखापितं ।
आ पछी मंडननी प्रशस्ति सारस्वतमंडनमा पहेलां त्रण पद्य (छेल्ला पाद सिवाय) मां मूकी छे ने ते पछी चोथु पद्य उमेरेलुं छे. पछी गद्यमां जणाव्युं छे के
श्रीमालज्ञातिमंडनेन संघेश्वरश्रीमंडनेन सं. श्रीधनराज, सं. खीगराज, सं. उदयराज, सं. मंडनपुत्र सं. पूजा, सं. जीजी, सं. संग्राम, सं. श्रीमाल प्रमुखपरिवारपरिवृतेन सकलसिद्धान्तपुस्तकानि लेखयांचक्राणि श्रीः ।।
आ उपरथी स्पष्ट जणाय छे के-मंडनने चार पुत्रो थया हता.
१८. धनद - मंडळनी पेठे तेना काका-दादा देहडनो पुत्र धन्यराज-धनराजधनद पण एक नामी विद्वान हतो. तेणे भर्तृहरिशतकत्रयनी पेठे शृंगारधनद, नीतिघनद, अने वैराग्यधनद नामना त्रण शतक-धनदत्रिशती रचेल छे. ते पैकी नीतिधनदनी प्रशस्ति उपरथी जणाय छे के तेणे ते मंडपदुर्गमां सं. १४९० मां
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