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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३ श्रुतसागर • ३२ है। इसमें देखे हुए स्वप्नों की अनुभूति या स्मृति जीव के हृदय में लम्बे समय तक अंकित रहती है। (७) सुषुप्ति अवस्था - भविष्दुःखबोधादया सोषुप्ति शोच्यते गतिः। एते तस्यामवस्थायां तृण-लोष्ठ शिलादयः ।। आत्म चेतना की सत्ता होते हुए भी यह जड़ता (स्वप्न रहित निद्रा) की अवस्था है। जीव अपनी आत्मा के कर्मावरणों के प्रति शोक तो करता है किन्तु जड़ता के कारण वासनात्मक प्रवृत्तियाँ को हटा नहीं पाता। मंगतरायकृत बारह भावना में सारभूत रूप में अज्ञान की सात स्थितियों को लेकर इस प्रकार स्पष्टता की गई है - जल नहिं पावे प्राण गमावे भटक भटक मरता। वस्तु पराई माने अपनी भेद नहीं करता ।। (ब) ज्ञान की सात भूमिकाएँ - ज्ञान की ७ भूमिकाओं को निम्नलिखित श्लोकों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है ज्ञानभूमिः शुभेच्छाख्या प्रथमा समुदाहृता। विचारणा द्वितीया सु तृतीया तनुमानसा ।। सत्त्वापत्तिश्चतुर्थी स्यात्ततो संसक्ति नामिका। पदार्था-भाविनी षष्ठी सप्तमी तुर्यगा स्मृता ।। (उ.प्र.स. पृ. ११८) (१) शुभेच्छा अवस्था - स्थितः किं मूढ? एवास्मि प्रेक्ष्येहं शास्त्र-सज्जनैः। वैराग्य-पूर्व-मिच्छेति शुभेच्छेत्युच्यते बुधैः ।। इस भूमि में वैराग्य भावना के उदय से जीव शुभोपयोग का सम्यक् बोध प्राप्त करता है! इस अवस्था में वह स्वयं से संवाद करता है कि हे आत्मन्! तू इतना मूढ क्यों हो रहा है? हाँ, मैं सचमुच मूढ़ तो हूँ किन्तु अब शास्त्र व सदसंगति से निजस्वरूप को कल्याण की भावना के साथ समझूगा। (२) विचारणा अवस्था - शास्त्र-सज्जन-संपर्क-वैराग्याभ्यासपूर्वकम्। सदाचारप्रवत्तिर्या प्रोच्यते सा चिचारणा ।। इस दशा में साधक सदाचार में प्रवृत्त रहने का निर्णय करता है और अणुव्रतों के पालन में प्रवृत्त हो जाता है। इसकी तुलना ५वें देशविरत नामक For Private and Personal Use Only
SR No.525282
Book TitleShrutsagar Ank 2013 09 032
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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