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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ सितम्बर - २०१३ अहम् और ममत्व के अत्यल्प विकास की अवस्था जाग्रत स्थिति मानी जा सकती है। यह पशुजगत के (त्रस या त्रियञ्च) कीट पतंगो आदि असंज्ञियों में पाई पाती है। यहाँ अल्पांश में ही अहम् भाव रहता है। (३) महाजाग्रत अवस्था - पीवरः प्रत्ययः प्रोक्तो महाजागृदिति स्फुरन्। अरूढमथवारूढं सर्वथा तन्मयात्मकम् ।। इस अवस्था में अहम् भाव की विशेष पुष्टि होती है। यहाँ ममत्व के पूर्ण विकास व आत्म चेतना (कार्य करने की शक्ति) की स्थिति को समझा जा सकता है। यह अवस्था देव यो सैनी पंचेन्द्रियों में होती है। (४) जाग्रत स्वप्न अवस्था - यज्जागृतो मनोराज्यं जागृतस्वनः स उच्यते । द्विचन्द्रशुक्तिकारूप्य मृगतृष्णादि-भेदतः ।। यह मनोकल्पना या दिवा स्वप्न की अवस्था है इसमें भ्रम युक्त व्यक्तित्व की उपस्थिति होने से मृगमरीचिका रहती है। इसके चलते वह जीव विषयवासनाओं में लीन रहता है। (७) स्वप्न (निद्रित) अवस्था - अभ्यासात् प्राप्य जागृत्यं स्वप्नोनेक विधोमभवेत्। अल्पकालं मया दृष्टं एवं नो सत्यमितयपित ।। इस अवस्था की अनुभूतियाँ को नींद के पश्चात् जागने की चेतना के रूप में समझा जा सकता है। इस दशा में स्वप्न में देखी वस्तु भी सत्य प्रतीत होती है। (६) स्वप्न जाग्रत अवस्था - निद्राकालानुभूतेर्ये निद्रान्ते प्रत्ययो हि यः। स स्वप्नः कथितस्यान् महाजागृत्स्थितेर्हदि ।। चिरसंदर्शनाभावाद् प्रफुल्लवृहदवपुः। स्वप्नो जागृतयारूढो महाजागृत्पदं ततः ।। अक्षते वा क्षते देहे स्वप्नजागृन्सतं हि तत्। षडवस्था परित्यागे जड़ा जीवस्य या स्थितिः ।। यह एक प्रकार की स्वप्निल चेतना है जो जागते हुए सपने देखने के समान For Private and Personal Use Only
SR No.525282
Book TitleShrutsagar Ank 2013 09 032
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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