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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ३२ क्षमा करने से क्षमाकर्ता का स्वास्थ्य श्रेष्ठतर और श्रेष्ठतम हो जाता है। उसकी कार्यकुशलता में वृद्धि हो जाती है ! क्षमा का पूर्ण लाभ क्षमाकर्ता को ही प्राप्ति होता है। क्षमा क्षमाकर्ता का भला करती है। क्षमाकर्ता क्षमा कर अपने मस्तिष्क का बोझ उतारकर प्रसन्न होता है। क्षमा करने से पीड़ित व्यक्ति को अपराधी व्यक्ति की तुलना में अधिक लाभ होता है। दोषी को क्षमाकर हम स्वयं को ही राहत पहुँचाते है। क्षमा की औषधि गहराई में जाकर हमारी चोट और घाव का उपचार करती है। हमारे हृदय में प्रेम और सौहार्द को उत्पन्न करती है, बढ़ाती है। क्षमा करने से हमारा जीवन स्वस्थ और लंबा हो जाता है। हम क्षमाकर बड़ी राहत प्राप्त करते है। दूसरी ओर दोषी व्यक्ति को क्षमा करने से उसके जीवन में नई किरण खिल जाती है। अपने व्यावहारिक जीवन में क्षमा का प्रयोग कर अनेक शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह सही है कि क्षमा करना प्रायः सरल नहीं होता है। वीर और अतिवीर व्यक्ति ही पूर्णतः क्षमा कर पाता है। क्षमा करने के लिए निजी साहस की आवश्यकता होती है। इसीलिए क्षमा को परम बल के रूप में स्वीकार किया गया है! समर्थ व्यक्तियों के आभूषण के रूप में स्वीकार किया गया है। क्षमा कनरे के लिए भगवान से प्राप्थना करना आवश्यकता होता है । क्षमा करने की शक्ति प्राप्त करने के लिए उपवास और आंशिक उपवास करना आवश्यक होता है। गहरी और गंभीर चोट को भरने के लिए धैर्यपूर्वक सतत प्रार्थना करना आवश्यक होता है। इसके लिए ईश्वर से शक्ति प्राप्त करना आवश्यक होता है। यदि हम क्षमा नहीं करते है। आवशे में रहते है। बदला लेने की योजनाएं बनाते रहते है। बदले की भावना को पैनी और तेज करते रहते है। इसके परिणाम स्वरूप हमारी हृदयगति बढ़ जाती है। हमारे ब्लडप्रेशर में वृद्धि हो जाती है। हमारे हाथ और पैर फूल जाते है। लड़खड़ाने लगते है। हम उदास और चिंतित हो जाते है। समुचित नींद नीहं ले पाते है। दोषी व्यक्ति को भुला देना क्षमा नहीं है। उसके साथ अपने संबंध समाप्त करना क्षमा नहीं है। उसके साथ दूरी रखना क्षमा नहीं है। दोषी व्यक्ति से आगे के लिए संबंध तोड़ लेना क्षमा नहीं है। क्षमा आंतरिक प्रक्रिया होती है! क्षमा पीड़ित व्यक्ति द्वारा दोषी व्यक्ति को प्रदत्त महत्वपूर्ण भेंट होती है। यह भेंट देकर For Private and Personal Use Only
SR No.525282
Book TitleShrutsagar Ank 2013 09 032
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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