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सितम्बर - २०१३ ||Qटक ॥ कमलउतपलगंध६३ सरिखा, रुधिरमांस सइर तणा। गाई दूध समान उज्व(ज्ज)ल, इसा अतिशय छइ घणा 11 अनंतगुणमणिरोहणाचल, रुपि मयण विशेषिइ। ते धन दिवस घडी अनोपम, जीणइ नयणे देखीइ 11८।। योवनभरि श्रीऋषभ आव्या, रूपइ सोहगसुंदरू! सकललक्षमी(क्ष्मी) तणुं सागर, वंछितदायक सुरतरु ||५||
॥ ढाल-जाननु ।। वीवाह अवसरि कंपीउ रे, आसन इंद्र, ताम। देव-देवी सवि मिल्यां रे, कांई करवा रे वीवाहनुं काम। जिहां अठइ रिषभ जिन स्वामि, रूडी नयरी अयोध्या ठामि ।।१।।
सुरासुर आवइ... भुवन-व्यंतर-योतिषी रे, वैमानिकनी कोडि | सामानिक अंगरक्षक मिलीआ, कांई आवइ निज रथि जोडि ।।२।।
सुरासुर आवइ... इंद्र बोलइ अम्हे करिसिउं, वीवाह जिननु आज। इंद्राणी कहइ अम्हे करिसिउं, काई कन्यानुं वीवाह काज ।।३।।
सुरासुर आवइ... रयण-सोवनजडित्त मंडप, चंद्रूआ४ चउसाल] ठामि-ठामिइं पूतली, जाणे मयण तणी हीइआलि ।।४।।
सुरासुर आवइ... इस्या मंडप तिहां रच्या रे, मांडीउ वीवाह। जोउ समकित करइ निरमल, कांई इंद्राणीनउ नाह ।।५।।
सुरासुर आवइ...
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