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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ श्रुतसागर - ३२ इम जनम सफल करी आपणउ, लेई चाल्या श्री जिनराज रे। माता पासइ थापीया, इम कीधा उच्छवकाज रे ।।४।। नंदीसरि यात्रा करी, पहुता निज-निज ठामि रे। जगजनना मन मोहतु इम, वाधइ रिषभजिन स्वामि रे ।।५।। ।। ढाल-घोडीनु ।। ।। मूलतानथी घोडी आवी ।। प्रभु वाधइ ए सुरतरु सरिखा, मरुदेवी-नाभि ते हरख्या। प्रभु आवीअ चडइ उच्छंगि. माइन(y) मन रेलइ रंगि ।।१।। ॥ टक ॥ रंग रमतु आंगिणि चालइ, कमलनयण जिणंदू ए। वणि अमृतवाणि करतु, जिसउ पूनिमचंदू(दु) ए ।। सकल सुरवर-असुर किंनर, मिलीअ आवइ इंदू(द्र) ए। करइ क्रीडा ऋषभ सरसिउं°, ओलगइ नागिंदू ए ||२|| अवसरि सोहमपति आवइ, सेलडीअ सरस एक ल्यावइ। पूछइ स्वामी ए तुम्ह भावइ. ते सेलडीअ स्वामी करि ठावइ ।।३।। करि सेलडी देई वंस थापिउ, नाम तसु इक्खागु ए| सबल पसरिउ पुहविमंडलि, आज लगेइ सोभागू ए ||४* ।। पांचसइ धनुष शरीर, देह सोवनवर्ण सधीर। लक्षण दससइ आठ रसाल, लंछनि वृषभ उत्तंग विसाल ।।५।। उत्तंग सरल विशाल नासा, केस काजलवयूँ ए। धवलदंत सुपंति सोहइ, जिसा शशिकर किरणू ए 1६11 निलवट्टि पंचगुलि प्रमाणी, अर्द्धचंद्र निलाडू ए। गजराज गति चालतउ जिणवर, नहीअ केहनइ पाडू ए ७|| जिनवर आहार-नी(नि)हार करंता, नवि कोई देखइ सुरनरवरता। जिनना स्वास-ऊसास सुगंध रे, जेहवा उतपलकमलना गंध रे !८!! * प्रतिलेखक द्वारा कडी क्रमांक ४ नो उल्लेख बे वार थयेल होदाथी अत्रे सुधारो करेल For Private and Personal Use Only
SR No.525282
Book TitleShrutsagar Ank 2013 09 032
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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