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जुलाई - २०१३ दुःखने वैराग्य साथे खूब नैकट्य छे. आवा ज केटलांक दुःखना प्रकारोनी वात भगवान बुद्ध कही. दुःखमुक्तिनो मार्ग आप्यो, चार आर्यसत्यनी प्ररूपणा द्वारा. चार आर्यसत्यनी वातथी बौद्धदर्शनना पायाना प्रारंभिक सिद्धांतनो परिचय मळी रहे छे. आ साथे जिन प्रतिमा संबंधी कला विषयक गतांकनो लेख "जैन प्रतिमाओ की परंपरा" आ अंकमां विराम पामे छे. __ तीर्थपरिचयमां श्री कुंभारियाजी तीर्थनो परिचय पण सुंदर रीते रजु थयो छे. सामान्यथी तीर्थोना विकासमा झडप आवी छे. तो तीर्थयात्रामा पण एटली ज, कदाच एनाथी पण वधारे झडप तीर्थयात्रामां आवी छे. पूजामां सवारे कोईक तीर्थमां होईए अने आरतिना समये सांजे कोईक तीर्थमां होईए ए गतिए थती तीर्थयात्रानी सरखामणीए आ प्रकारना तीर्थ महात्म्यने उजागर करता लेखोर्नु वांचन बाद थयेल तीर्थयात्रा खरेखर आनंद अने स्मृत्तिनी अभिवृद्धिन कारण बनी रहे छे.
श्रुतसागर माटे आपश्रीनो अभिप्राय अने लेख आवकार्य छे. आ प्रयास सहियारो छे. अमारो-तमारो-सहुनो-बधानो. नवा लेखको अने संपादको आ श्रुतसागरना माध्यमे आगळ आवे, एमना संपादनो श्रुतसागरना माध्यमे प्रकाशित थाय ए दिशामां ज आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर अने श्रुतसागरनो प्रयास छे. आशा छे के आ प्रयास अने प्रवृत्तिमा सौना साथ अने सहकार थकी सफळता मळशे ज. अस्तु!
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