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जुलाई - २०१३ परन्तु जब क्रोध की मात्र अनुभूति हो, तो उसे भावक्रोध कहा जाता है, यह द्रव्यक्रोध की पूर्व अवस्था है.
मान : मनुष्य के अन्दर स्वाभिमान की भावना होती है, परन्तु जब यह स्वाभिमान दंभ या प्रदर्शन का रूप ले लेता है, तब इसे अहंकार-मान कहा जाता है. अहंकार जाति, कुल. ऐश्वर्य, बल, तप, ज्ञान आदि किसी का भी हो सकता है. अहंकारग्रस्त व्यक्ति अपनी अहंवृत्ति का पोषण करने के लिए अपने गुणों तथा योग्यताओं का प्रदर्शन करता है.
मान कषाय के जन्म लेते ही व्यक्ति के सारे सम्बन्ध संकीर्ण हो जाते हैं. जैन परंपरा में मान को मद भी कहा जाता है, जो आठ प्रकार के हैं- १. जाति मदउच्चजाति में जन्म लेने के कारण मनुष्य को जाति का अहंकार हो जाता है. २. कुल मद- इसी प्रकार उच्चकुल में जन्म लेने के कारण कुल का अहंकार हो जाता है. ३. बल मद- शारीरिक रूप से शक्तिशाली होने के कारण बल का अहंकार हो जाता है. ४. ऐश्वर्य मद- प्रचुर धन-सम्पत्ति होने के कारण ऐश्वर्य का मद हो जाता है. ५. तप मद- घोर तपश्चर्यापूर्ण जीवन जीने के कारण मनुष्य को तप का अहंकार हो जाता है. ६. ज्ञान मद- विविध शास्त्रों का ज्ञाता होने के कारण व्यक्ति को ज्ञान का अहंकार हो जाता है.७. सौन्दर्य मद- स्वरूपवान होने से उसे सौंदर्य का अहंकार हो जाता है. व ८. अधिकार मद- जो मनुष्य अधिकार सम्पन्न होता है, उसे अपने अधिकारों का मद हो जाता है.
_मद से मन मलिन हो जाता है. मन को निर्मल करने के लिए मद का नाश करना आवश्यक है. आत्मा की बहिरात्म अवस्था में मान कषाय का जन्म होता है, परन्तु इसके नष्ट होते ही अन्तरात्म अवस्था का प्रारम्भ हो जाता है.
माया : कपट का आचरण करना माया कहलाती है. जिस व्यक्ति के मन, वचन और व्यवहार में समानता न हो, वह मायावी कहलाता है. ऐसा व्यक्ति मन में सोचता कुछ है, बोलता कुछ है और उसका व्यवहार इन दोनों से विपरीत होता है. इसके अन्तर्गत किसी को ठगने के उद्देश्य से उसके साथ किया जानेवाला कपटपूर्ण आचरण, किसी को ठगना, ठगने के उद्देश्य से किसी को अत्यधिक सम्मान देना, कुटिलतापूर्ण वचन कहना, अत्यन्त रहस्यमयी बातें करना. अत्यन्त निकृष्ट कार्य करना, दूसरों को हिंसा के लिए उकसाना, किसी के साथ निंदनीय व्यवहार करना. भांडों के समान कुचेष्टा करना, अपनी करतूत को छिपाने का प्रयत्न करना, ठगना तथा व्यापार में अधिक लाभ हेतु उत्तम वस्तु में हीन वस्तुओं की मिलावट करना, ये सभी माया कषाय कहलाते हैं.
लोभ : मनुष्य के हृदय में किसी वस्तु या स्थान के प्रति उत्पन्न होनेवाली तृष्णा लोभ कहलाती है. लोभ कषाय सभी कषायों से तीव्र होता है. अन्य कषाय
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