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एक महत्त्वपूर्ण प्रति
मुनि श्री सुयशचंद्रविजय 'पू. न्यायविशारद, न्यायाचार्य, महोपाध्याय यशोविजयजी स्वहस्तलिखित कृति संग्रह' नामनुं पुस्तक हाथमां आव्युं त्यारे सौ प्रथमवार पू. उपाध्यायजीभगवंतना अक्षरदेहना दर्शन थया. पू. मुनिराज श्रीयशोविजय (पछीथी आ. श्री यशोदेवसूरिजी म. सा.) ए संपादित करेल ते संग्रहमां पू. उपाध्यायजीना हाथे लखायेल, अन्य विद्वान द्वारा लखायेल छता पूज्यश्रीनी मालिकीनो निर्देश करती एम भिन्न भिन्न दृष्टिए महत्वपूर्ण प्रतिओनी 'photography' ओने प्रकाशित करवामां आवी हती. हमणा सुरत ज्ञानमंदिरनुं काम करता पू. उपाध्यायजीना हस्ताक्षरमां लखायेल एक पद्य श्लोकवाळी कृति जोवामां आवी. जेनी नोंध अहीं वाचकोनी जाण माटे परिचय साथे मुकवामां आवी छे.
कृतिनाम - अपरोख्यानुभवाख्यप्रकरण, कर्ता - परमहंस परिव्राजक, प्रतिलेखक - गणि मानविजयजी, पत्र - ३ प्रतिलेखन संवत् - १७२१, श्लोक संख्या - ५२
उपरोक्त ग्रंथ पू. मानविजयजी' गणिए अभ्यासादि अर्थे सं. १७२१ना आसो सुद रना गुरुवारे लख्यो. पू. गणि मानविजय लिखित ते ग्रंथने पू. उपाध्यायजीए वि. सं. १७३२ ना सौभाग्य पांचम (कारतक सुद ५)ना दिवसे (पोताना गुरु) पू. नयविजयजीना सुकृतने माटे चित्कोश (ज्ञानमंदिर)मां मूक्यो. पूर्वे श्रावकोए पोताना पूर्वजादि परिवारना सुकृतने माटे प्रतिष्ठाओ करावी होय, ग्रंथागार बनाव्या होय, ग्रंथलेखनादि कराव्यु होय तेवी घणी नोंध छे. ते बधाथी भिन्न गुरु-भगवंत माटे करायेली प्रस्तुत नोंध आंखे वळगे तेवी छे. प्रतनी मूळ प्रशस्ति : संवत् १७२१ वर्षे आश्विनसित २ भौमे लिखितं ग. मानविजयेन।।
कल्याणमस्तु ।। श्री।। उपाध्यायजी म. सा. बी प्रशस्ति :
चित्कोशे न्यस्तः श्रीयशोविजयवाचकैरयं ग्रन्थः।
श्रीनयविजयबुधानां, चिरायसुकृतानुमतिहेतोः ।।१।। सं. १७३२ सौ ०५ १. पू. मानविजय गणिजी पण प्रायः विचार रत्नाकर' ना कर्ता होवा जोइए एबुं अनुमान थाय
२. सौ = सौभाग्य = कारतक सुद
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