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श्रुतसागर
वसई
ते गति कहवाइ |
पूरी आय जीव जिहां जाइ, कर्म चवीसइ आवई जिहां हुती, भणियइ आगम ते आगती ।।७।।
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जाइ बहुं आवइ बिहु थकी, पंचेद्री तिरि नर नारकी । आगति एह भवनपति तणी, गति पांचइ श्रीप्रवचनि भणी ||८||
पुढवी पाणी वणसइकाय, पंचेद्री तिरि नर माहइ जीइ । एणी परि दंडक ए अग्यार, आगति गति तु कहिउ विचार 118 |
पहिलउ थावर पृथिवीकाय, विणसी दस दंडक माहिं जाइ पंचइ थावर बिं-ति- चउरिंदि, माणुसनइ तिर्यंच पर्चिदि ||१०||
नारय विण दंडक वीस पृथिवी माहिं आवइ निसिदीस । इणि परि पाणी विणसइ काय, दस गति आगति त्रेवीसइ थाइ ।।११।।
ते काय नव दंडक माहि जाइ एक माणस नवि थाइ । आवइ दस दंडक मांहिथी, तेर देव एक नारकनथी । १२ ।।
वाउकाय गति आगति जाणि, अगनिकाय जिम सूत्र वखाणि । नव गति दस आगति एहनी, इम विचित्र गति छइ जीवनी ||१३||
हिव विगलेंदी विगति विचारी, त्रिणइ दस दंडक मझारि । कर्मयोगि गति आगति करइ वली, मरइ वली वली अवतरइ ||१४||
पंचेदी तिरि-नर- विगलिंद, पंचइ थावर ए दसिंद | एह मांहिं गति आगति जाणि बि-ति- चउरिंदी तणी वखाणि ।।१५।।
हिव पंचिंदी कहउं तिर्यंच, चउवीसइ गति आगति संच । भव अनंत पूरिओ संसार, तउ पुण प्रभु विण नावइ पार ||१६||
सिद्ध सहित दंडक पंचवीस, मणुय तणी गति ए पंचवीस । तउ वाउ विण आवी रहइ, बावीसइ मानव भव लहइ ||१७||
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