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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - २८ www.kobatirth.org श्रुतसागर वसई ते गति कहवाइ | पूरी आय जीव जिहां जाइ, कर्म चवीसइ आवई जिहां हुती, भणियइ आगम ते आगती ।।७।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाइ बहुं आवइ बिहु थकी, पंचेद्री तिरि नर नारकी । आगति एह भवनपति तणी, गति पांचइ श्रीप्रवचनि भणी ||८|| पुढवी पाणी वणसइकाय, पंचेद्री तिरि नर माहइ जीइ । एणी परि दंडक ए अग्यार, आगति गति तु कहिउ विचार 118 | पहिलउ थावर पृथिवीकाय, विणसी दस दंडक माहिं जाइ पंचइ थावर बिं-ति- चउरिंदि, माणुसनइ तिर्यंच पर्चिदि ||१०|| नारय विण दंडक वीस पृथिवी माहिं आवइ निसिदीस । इणि परि पाणी विणसइ काय, दस गति आगति त्रेवीसइ थाइ ।।११।। ते काय नव दंडक माहि जाइ एक माणस नवि थाइ । आवइ दस दंडक मांहिथी, तेर देव एक नारकनथी । १२ ।। वाउकाय गति आगति जाणि, अगनिकाय जिम सूत्र वखाणि । नव गति दस आगति एहनी, इम विचित्र गति छइ जीवनी ||१३|| हिव विगलेंदी विगति विचारी, त्रिणइ दस दंडक मझारि । कर्मयोगि गति आगति करइ वली, मरइ वली वली अवतरइ ||१४|| पंचेदी तिरि-नर- विगलिंद, पंचइ थावर ए दसिंद | एह मांहिं गति आगति जाणि बि-ति- चउरिंदी तणी वखाणि ।।१५।। हिव पंचिंदी कहउं तिर्यंच, चउवीसइ गति आगति संच । भव अनंत पूरिओ संसार, तउ पुण प्रभु विण नावइ पार ||१६|| सिद्ध सहित दंडक पंचवीस, मणुय तणी गति ए पंचवीस । तउ वाउ विण आवी रहइ, बावीसइ मानव भव लहइ ||१७|| For Private and Personal Use Only ७
SR No.525278
Book TitleShrutsagar Ank 2013 05 028
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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