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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मई - २०१३ विरोधमा १२२ बोल बनाव्या, तेमज विविध २६ जेटली सज्झायो अने विविध स्तवनोनी रचना करी. (जै.प.इ.रना आधारे) प्रत परिचय : आ कृतिनी प्रत ज्ञानमंदिरमा ३५९५८ नंबरना क्रमांक पर संगृहीत छे. अंदाजे विक्रमनी १७मी सदीमां लखायेल आ प्रतर्नु परिमाण २५४११ छे. प्रतनी ७ लाईनमा ३२ जेटला अक्षरो आलेखाया छे, अक्षरो सुंदर छे. कडी क्रमांकनी बन्ने तरफ दंड आपवामां आव्या छे, क्रमांक अने दंड माटे लाल रंगनो वपराश थयो छे. २४ दंडक विचार गर्भित पार्धजिन स्तवन प्रणमउं पासनाह प्रहि समइ, दरसणि दुरिय दाह उपसमइ । करउं वीनती बइ करजोडि, गति आगलि भव तणीय विछोडि ||१|| तउं समरथ प्रभु त्रिभुवन धणी, हियडइ आण वहउं तुम्ह तणी । काल अनंतइ दुल्लह लहीहि, वडां भवभय बीहउं नही ।।२।। बोली जीव तणी गति च्यारि, चउरासी लखयोनि विचार | वार अनंत अकेकी रहिउ, तुह पणि तुम्हे दंसण नवि लहिउ ||३|| सहू जीव दंडक चउवीस, ते मनि आणवा निसिदीस | बहु भव लगइ सुख दुख तिहां सह्या, न्यानी विण किम जाइ कह्या ।।४।। पहिलउ दंडक नारक तणउ, भवनपति दस दंडक भणउ | थावर पंच्च विगलंदी तिन्नि, पंचेंद्रीतिरि नर ए दुन्नि ।।५।। वितर जोइस वेमाणिया, इणि परि चउंचीसइ जणिया । सुगुरुवचन मनिमाहि धारसु, तेहनी गति आगति पभणसु ।।६।। For Private and Personal Use Only
SR No.525278
Book TitleShrutsagar Ank 2013 05 028
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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